फ़िल्मी शेर पर शेर
यहाँ हमने जो अशआर जमा
किए है उन का इस्तेमाल फ़िल्मों में हुआ है और इसी वजह से इन में से बेश्तर अशआर ज़बान-ए-ज़द ख़ास-ओ-आम है और हमारी ज़िंदगी के रोज़-मर्रा के मुआमलात को घेरते हैं। उम्मीद है आप को ये इन्तिख़ाब पसंद आएगा।
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
-
टैग्ज़ : इश्क़और 7 अन्य
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
-
टैग्ज़ : जन्नतऔर 3 अन्य
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
-
टैग्ज़ : प्रेरणादायकऔर 2 अन्य
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
-
टैग्ज़ : प्रेरणादायकऔर 5 अन्य
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
-
टैग्ज़ : इश्क़और 6 अन्य
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
-
टैग्ज़ : टॉप 10 रेख़्ताऔर 2 अन्य
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
-
टैग्ज़ : इक़बाल डेऔर 3 अन्य
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
-
टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
-
टैग्ज़ : ज़िंदगीऔर 1 अन्य
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
-
टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 1 अन्य
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
-
टैग्ज़ : इश्क़और 7 अन्य
की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना
-
टैग्ज़ : क़ातिलऔर 2 अन्य
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
-
टैग्ज़ : जवानीऔर 3 अन्य
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
-
टैग्ज़ : इक़बाल डेऔर 2 अन्य
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
-
टैग्ज़ : आरज़ूऔर 5 अन्य
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
-
टैग्ज़ : जब्रऔर 5 अन्य
याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
-
टैग्ज़ : अज़ाबऔर 3 अन्य
सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है
-
टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 1 अन्य
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
-
टैग्ज़ : तसव्वुरऔर 1 अन्य
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
-
टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
-
टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 1 अन्य
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
-
टैग्ज़ : आहटऔर 2 अन्य
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
-
टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
-
टैग्ज़ : ज़र्बुल-मसलऔर 2 अन्य
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
-
टैग्ज़ : एटीट्यूडऔर 3 अन्य
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ
-
टैग्ज़ : इश्क़और 6 अन्य
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से
इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से
-
टैग्ज़ : चराग़और 3 अन्य
राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या
-
टैग्ज़ : प्रसिद्ध मिसरेऔर 1 अन्य
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
-
टैग्ज़ : ज़र्बुल-मसलऔर 1 अन्य
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए
-
टैग्ज़ : प्रेरणादायकऔर 1 अन्य
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
-
टैग्ज़ : प्रसिद्ध मिसरेऔर 2 अन्य
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
-
टैग्ज़ : प्रसिद्ध मिसरेऔर 1 अन्य
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
-
टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत हम अपने ग़म से कम ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामुशी क्या चीज़ है
-
टैग्ज़ : ख़ामोशीऔर 1 अन्य
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
-
टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
-
टैग्ज़ : प्रसिद्ध मिसरेऔर 2 अन्य
उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
-
टैग्ज़ : अम्नऔर 2 अन्य
कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल
वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए
-
टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 1 अन्य
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
-
टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
-
टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम
रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है
-
टैग्ज़ : ईदऔर 1 अन्य
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
-
टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
-
टैग्ज़ : प्रेरणादायकऔर 3 अन्य
शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले
-
टैग्ज़ : प्रेरणादायकऔर 2 अन्य
'मुसहफ़ी' हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म
तेरे दिल में तो बहुत काम रफ़ू का निकला
व्याख्या
यह मुस्हफ़ी के मशहूर अशआर में से एक है। ख़्याल नाज़ुक है इसलिए लोग इसे पसंद करते हैं। इस शे'र में दो किरदार हैं, एक मुस्हफ़ी से गुफ़्तगू करने वाला और दूसरा ख़ुद मुस्हफ़ी।
हम तो ये समझते थे, में तअ'ज्जुब भी और अफ़सोस का इज़हार भी कि “होगा कोई ज़ख़्म” यानी कोई एक-आध आम सा या छोटा सा ज़ख़्म होगा जो ख़ुदबख़ुद भर जाएगा। रफ़ू करने के मानी हैं, फटे हुए कपड़े को धागे से मरम्मत करना, फटी हुई जगह को भरना। उर्दू शायरी में “रफ़ू” लफ़्ज़ का बहुत इस्तेमाल हुआ है और इससे तात्पर्य आशिक़ के दिल के ज़ख़्मों की मरम्मत करना यानी टाँके लगाना है।
शायर से वाचक यानी बात करने वाला कहता है, ऐ मुस्हफ़ी तुमने तो ये जाना था कि तुम्हारे दिल में कोई छोटा सा ज़ख़्म होगा जो ख़ुद-ब-ख़ुद भर जाएगा मगर जब मैंने उसमें झांक कर देखा तो मैंने ये पाया कि तुम्हारे दिल में बहुत से ज़ख़्म मौजूद हैं जिन्हें मरम्मत की ज़रूरत है। ज़ाहिर है कि ये इश्क़ के ज़ख़्म हैं। कोई असली ज़ख़्म नहीं हैं कि जिन पर टाँके लगाए जाएं, जिन पर मरहम रखा जाए। इसलिए यहाँ रफ़ू से ये मतलब है कि इन ज़ख़्मों की मरम्मत तभी होगी जब शायर का महबूब उसकी तरफ़ तवज्जो देगा।
इस तरह से शे’र का भावार्थ ये निकलता है कि ऐ मुस्हफ़ी बज़ाहिर तुम्हारे दिल में लगता था कि कोई एक-आध ज़ख़्म होगा जो ख़ुदबख़ुद भर जाएगा मगर देखने पर मालूम हुआ कि अस्ल में तुमने इश्क़ में दिल पर बहुत ज़ख़्म खाए हैं और उन ज़ख़्मों की मरम्मत करना कोई आसान काम नहीं, अलबत्ता तुम्हारा महबूब अगर तुम्हारी तरफ़ लुत्फ़ की निगाहों से देखेगा तो ज़रूर ये ज़ख़्म भर सकते हैं।
शफ़क़ सुपुरी
-
टैग्ज़ : ख़ुद-अज़िय्यतीऔर 1 अन्य
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा
-
टैग्ज़ : एटीट्यूडऔर 1 अन्य