जाफ़र अली हसरत
ग़ज़ल 1
अशआर 2
तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत हम अपने ग़म से कम ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली
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उड़ गई पर से ताक़त-ए-परवाज़
कहीं सय्याद अब रिहा न करे
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