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वतन-परस्ती पर शेर

शायरी में वतन-परस्ती

के जज़्बात का इज़हार बड़े मुख़्तलिफ़ ढंग से हुआ है। हम अपनी आम ज़िंदगी में वतन और इस की मोहब्बत के हवाले से जो जज़्बात रखते हैं वो भी और कुछ ऐसे गोशे भी जिन पर हमारी नज़र नहीं ठहरती इस शायरी का मौज़ू हैं। वतन-परस्ती मुस्तहसिन जज़्बा है लेकिन हद से बढ़ी हुई वत-परस्ती किस क़िस्म के नताएज पैदा करती है और आलमी इन्सानी बिरादरी के सियाक़ में उस के क्या मनफ़ी असरात होते हैं इस की झलक भी आपको इस शेअरी इंतिख़ाब में मिलेगी। ये अशआर पढ़िए और इस जज़बे की रंगारंग दुनिया की सैर कीजिए।

दिल से निकलेगी मर कर भी वतन की उल्फ़त

मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी

लाल चन्द फ़लक

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही

साहिर लुधियानवी

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा

हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा

अल्लामा इक़बाल

वतन की रेत ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे

मुझे यक़ीं है कि पानी यहीं से निकलेगा

मुज़फ़्फ़र वारसी

लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है

उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

वतन के जाँ-निसार हैं वतन के काम आएँगे

हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमाँ बनाएँगे

जाफ़र मलीहाबादी

दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो

निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो

जाफ़र मलीहाबादी

इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान

अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान

जावेद अख़्तर

ज़मीं पर घर बनाया है मगर जन्नत में रहते हैं

हमारी ख़ुश-नसीबी है कि हम भारत में रहते हैं

महशर आफ़रीदी

वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है

मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में

चकबस्त बृज नारायण

उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता

जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें

अज्ञात

नाक़ूस से ग़रज़ है मतलब अज़ाँ से है

मुझ को अगर है इश्क़ तो हिन्दोस्ताँ से है

ज़फ़र अली ख़ाँ

ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूं

कि जल्द हम कोई सख़्त इंक़लाब देखेंगे

अहमक़ फफूँदवी

वतन की पासबानी जान-ओ-ईमाँ से भी अफ़ज़ल है

मैं अपने मुल्क की ख़ातिर कफ़न भी साथ रखता हूँ

अज्ञात

अहल-ए-वतन शाम-ओ-सहर जागते रहना

अग़्यार हैं आमादा-ए-शर जागते रहना

जाफ़र मलीहाबादी

कहाँ हैं आज वो शम-ए-वतन के परवाने

बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़्साने

सिराज लखनवी

हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी

ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते

खुर्शीद अकबर

है मोहब्बत इस वतन से अपनी मिट्टी से हमें

इस लिए अपना करेंगे जान-ओ-तन क़ुर्बान हम

अज्ञात

होगा राएगाँ ख़ून-ए-शहीदान-ए-वतन हरगिज़

यही सुर्ख़ी बनेगी एक दिन उनवान-आज़ादी

नाज़िश प्रतापगढ़ी

दुख में सुख में हर हालत में भारत दिल का सहारा है

भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से प्यारा है

हामिदुल्लाह अफ़सर

भारत के सपूतो हिम्मत दिखाए जाओ

दुनिया के दिल पे अपना सिक्का बिठाए जाओ

लाल चन्द फ़लक

क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का

थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

बे-ज़ार हैं जो जज़्बा-ए-हुब्ब-उल-वतनी से

वो लोग किसी से भी मोहब्बत नहीं करते

अज्ञात

मैं ने आँखों में जला रखा है आज़ादी का तेल

मत अंधेरों से डरा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

अनीस अंसारी

वो हिन्दी नौजवाँ यानी अलम-बरदार-ए-आज़ादी

वतन की पासबाँ वो तेग़-ए-जौहर-दार-ए-आज़ादी

मख़दूम मुहिउद्दीन

कारवाँ जिन का लुटा राह में आज़ादी की

क़ौम का मुल्क का उन दर्द के मारों को सलाम

बनो ताहिरा सईद

ख़ुदा काश 'नाज़िश' जीते-जी वो वक़्त भी लाए

कि जब हिन्दोस्तान कहलाएगा हिन्दोस्तान-ए-आज़ादी

नाज़िश प्रतापगढ़ी

सर-ब-कफ़ हिन्द के जाँ-बाज़-ए-वतन लड़ते हैं

तेग़-ए-नौ ले सफ़-ए-दुश्मन में घुसे पड़ते हैं

बर्क़ देहलवी

बनाना है हमें अब अपने हाथों अपनी क़िस्मत को

हमें अपने वतन का आप बेड़ा पार करना है

जाफ़र मलीहाबादी
बोलिए