बनो ताहिरा सईद
ग़ज़ल 15
नज़्म 12
अशआर 3
कारवाँ जिन का लुटा राह में आज़ादी की
क़ौम का मुल्क का उन दर्द के मारों को सलाम
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तड़पना गुनगुनाना आह भरना दश्त-पैमाई
दिल-ए-शाइ'र की कुछ रंगीनियाँ हैं मेरे हिस्से में
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'ताहिरा' तल्ख़ी-ए-दौराँ की शराब-ए-रंगीं
तेरी ग़ज़लों में रची है तुझे मालूम नहीं
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