नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल 10
नज़्म 11
अशआर 4
न होगा राएगाँ ख़ून-ए-शहीदान-ए-वतन हरगिज़
यही सुर्ख़ी बनेगी एक दिन उनवान-आज़ादी
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ख़ुदा ऐ काश 'नाज़िश' जीते-जी वो वक़्त भी लाए
कि जब हिन्दोस्तान कहलाएगा हिन्दोस्तान-ए-आज़ादी
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जवानो नज़्र दे दो अपने ख़ून-ए-दिल का हर क़तरा
लिखा जाएगा हिन्दोस्तान को फ़रमान-ए-आज़ादी
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तह बह तह जमती चली जाती है सन्नाटों की गर्द
हाल-ए-दिल सब देखते हैं पूछता कोई नहीं
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