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तमन्ना पर शेर

इच्छा इंसान की स्वाभाविक

प्रवृति है । हर इंसान अपनी ज़िंदगी में कुछ न कुछ इच्छा रखता है । हमारे जीवन में दुख और हसरतों का एक बड़ा कारण हमारी तमन्नाएं हैं । हमारी इच्छा और आरज़ू अक्सर पूरी नहीं होतीं, लेकिन हम उस को पालते हैं । दर-अस्ल तमन्ना एक ऐसी ख़्वाहिश का नाम है जो ज़िंदगी के हर मरहले में किसी न किसी तरह से मौजूद रहती है । उर्दू शाइरी ने जीवन के इस तजरबे को बड़ी ख़ूबसूरती से पेश किया है । यहाँ तमन्ना-शाइरी के ख़ास रंगों का एक संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है ।

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

मिर्ज़ा ग़ालिब

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं

दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद

कैफ़ी आज़मी

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब

दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक

मिर्ज़ा ग़ालिब

आरज़ू है कि तू यहाँ आए

और फिर उम्र भर जाए कहीं

नासिर काज़मी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है

जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है

जिगर मुरादाबादी

गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने

वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने

जौन एलिया

हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम

तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम

जौन एलिया

सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है

जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते

अहमद फ़राज़

तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता

लफ़्ज़ सूझा तो मआ'नी ने बग़ावत कर दी

अहमद नदीम क़ासमी

आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास

मेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे

बशीर फ़ारूक़ी

ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते

जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

खिलौने दे के बहलाया गया हूँ

शाद अज़ीमाबादी

बाक़ी है अब भी तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू

क्यूँकर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे

आदिल असीर देहलवी

कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी

कैसे कहूँ किसी की तमन्ना चाहिए

शाद आरफ़ी

मैं गया हूँ वहाँ तक तिरी तमन्ना में

जहाँ से कोई भी इम्कान-ए-वापसी रहे

महमूद गज़नी

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

ज़िंदगी क्या जो बसर हो चैन से

दिल में थोड़ी सी तमन्ना चाहिए

जलील मानिकपूरी

दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह

आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के

जलील मानिकपूरी

तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना

तिरी आरज़ू है अगर आरज़ू है

ख़्वाजा मीर दर्द

अरमान वस्ल का मिरी नज़रों से ताड़ के

पहले ही से वो बैठ गए मुँह बिगाड़ के

लाला माधव राम जौहर

बाद मरने के भी छोड़ी रिफ़ाक़त मेरी

मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी

अमीर मीनाई

हम मानेंगे ख़मोशी है तमन्ना का मिज़ाज

हाँ भरी बज़्म में वो बोल पाई होगी

कालीदास गुप्ता रज़ा

हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए

दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा दुनिया का

वहीद क़ुरैशी

ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को

वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता

इस्माइल मेरठी

एक भी ख़्वाहिश के हाथों में मेहंदी लग सकी

मेरे जज़्बों में दूल्हा बन सका अब तक कोई

इक़बाल साजिद

यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले

आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी

अमीर मीनाई

मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है

तुम्हारे साथ मिल कर ख़ुद को धोना चाहता हूँ मैं

फ़रहत एहसास

जीने वालों से कहो कोई तमन्ना ढूँडें

हम तो आसूदा-ए-मंज़िल हैं हमारा क्या है

महमूद अयाज़

मिरी हस्ती है मिरी तर्ज़-ए-तमन्ना दोस्त

ख़ुद मैं फ़रियाद हूँ मेरी कोई फ़रियाद नहीं

जिगर मुरादाबादी

ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़ुज़ूल है

सूखी नदी के पास समुंदर जाएगा

हयात लखनवी

इश्क़ है जी का ज़ियाँ इश्क़ में रक्खा क्या है

दिल-ए-बर्बाद बता तेरी तमन्ना क्या है

जुनैद हज़ीं लारी

दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक

ऐसे ज़ख़्म को अच्छा कर के बैठ गए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

आह वो दिल कि जिसे दर्द की लज़्ज़त मिली

हाए वो दर्द कि जिस का हुआ अरमाँ मुझ को

बासित भोपाली

क्या ख़बर कब क़ैद-ए-बाम-ओ-दर से उक्ता जाए दिल

बस्तियों के दरमियाँ सहरा भी होना चाहिए

मुबारक शमीम

तहरीर थे ख़्वाब और तमन्ना के हवाले

इतना वरक़-ए-दिल कोई सादा तो नहीं था

अहमद अज़ीम

मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिन

मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और तुम मेरे

महमूद अयाज़

तालिब-ए-दस्त-ए-हवस और कई दामन थे

हम से मिलता जो यूसुफ़ के गरेबाँ से मिला

मुस्तफ़ा ज़ैदी

आरज़ू-ए-विसाल तेरे लिए

दिल नहीं हारा जान हारी है

रियाज़ शाहिद

ख़ुदा रक्खे ये पास-ए-वज़्अ' में तुम से भी बढ़ कर है

तुम्हीं कर निकालोगे तो अरमाँ दिल से निकलेगा

नसीम नूर महली

हर गुज़रगाह-ए-तमन्ना पर बहुत सी गर्द है

लेकिन इस को एक ही झोंका उड़ा ले जाएगा

असअ'द बदायुनी

अब भी कोह-ए-तूर पर गोया ज़बान-ए-हाल से

है कोई और उस के जल्वे का तमन्नाई कि बस

रईस रामपुरी

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