महमूद अयाज़
ग़ज़ल 15
नज़्म 18
अशआर 10
चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं
हम ने भी उस से कोई बात न की
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मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिन
न मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और न तुम मेरे
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लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
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वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो
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वो मिरे साथ है साए की तरह
दिल की ज़िद है कि नज़र भी आए
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