जुनैद हज़ीं लारी
ग़ज़ल 3
नज़्म 1
अशआर 15
देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से
तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से
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वो सादगी में भी है अजब दिलकशी लिए
इस वास्ते हम उस की तमन्ना में जी लिए
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क़तरा न हो तो बहर न आए वजूद में
पानी की एक बूँद समुंदर से कम नहीं
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अजब बहार दिखाई लहू के छींटों ने
ख़िज़ाँ का रंग भी रंग-ए-बहार जैसा था
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तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए
कि हम से तय न हुए फ़ासले जुदाई के
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