aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1959 - 2014 | दिल्ली, भारत
बाक़ी है अब भी तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू
क्यूँकर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
काग़ज़ तमाम किल्क तमाम और हम तमाम
पर दास्तान-ए-शौक़ अभी ना-तमाम है
ख़िदमत से उस्ताद की रहता है जो दूर
चेहरे पर उस के नहीं अच्छाई का नूर
क्या नादाँ से दोस्ती क्या दाना से बैर
दोनों ऐसे काम हैं जिन में नहीं है ख़ैर
अम्मी होंगी मुंतज़िर और कहीं मत जाओ
छूटो जब इस्कूल से सीधे घर को आओ
जो राह की अच्छी है उधर जाता है
बच कर वो बुराई से गुज़र जाता है
पढ़ कर ही तो आता है सलीक़ा बच्चो
ता'लीम से इंसान सुधर जाता है
दुश्मन भी हैरान है कर के लाख बिगाड़
तेरी मर्ज़ी के बिना हिलता नहीं पहाड़
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