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शाद अज़ीमाबादी

1846 - 1927 | पटना, भारत

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में विख्यात।

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में विख्यात।

शाद अज़ीमाबादी

ग़ज़ल 57

नज़्म 1

 

अशआर 43

ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है

तड़प दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है

ये बज़्म-ए-मय है याँ कोताह-दस्ती में है महरूमी

जो बढ़ कर ख़ुद उठा ले हाथ में मीना उसी का है

अब भी इक उम्र पे जीने का अंदाज़ आया

ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मिरा मैं बाज़ आया

दिल-ए-मुज़्तर से पूछ रौनक़-ए-बज़्म

मैं ख़ुद आया नहीं लाया गया हूँ

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

खिलौने दे के बहलाया गया हूँ

रुबाई 24

पुस्तकें 84

वीडियो 5

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उस्ताद बरकत अली ख़ान

उस्ताद बरकत अली ख़ान

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उस्ताद बरकत अली ख़ान

ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

आबिदा परवीन

ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

आबिदा परवीन

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

मेहरान अमरोही

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

उस्ताद बरकत अली ख़ान

ऑडियो 10

ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम

कुछ कहे जाता था ग़र्क़ अपने ही अफ़्साने में था

ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया

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