नसीम नूर महली
ग़ज़ल 3
अशआर 4
बहुत रोएगी दुनिया उस बशर की बद-नसीबी पर
जो दाग़-ए-आरज़ू ले कर तिरी महफ़िल से निकलेगा
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न खींच ऐ मेहरबाँ सीने से मेरे तीर रहने दे
निकल जाएगा दम मेरा जो पैकाँ दिल से निकलेगा
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ये मौजों के नहीं ऐ ना-ख़ुदा तक़दीर के बल हैं
सफ़ीना ग़र्क़ हो कर दामन-ए-साहिल से निकलेगा
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ख़ुदा रक्खे ये पास-ए-वज़्अ' में तुम से भी बढ़ कर है
तुम्हीं आ कर निकालोगे तो अरमाँ दिल से निकलेगा
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