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मोहब्बत पर शेर

मोहब्बत पर ये शायरी

आपके लिए एक सबक़ की तरह है, आप इस से मोहब्बत में जीने के आदाब भी सीखेंगे और हिज्र-ओ-विसाल को गुज़ारने के तरीक़े भी. ये पहला ऐसा ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह है जिसमें मोहब्बत के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और मोहब्बत करने वालों के बीच साझा कीजिए.

ये किन नज़रों से तू ने आज देखा

कि तेरा देखना देखा जाए

अहमद फ़राज़

कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल

मुझे आज़मा रहा है कोई रुख़ बदल बदल कर

शकील बदायूनी

इश्क़ की राह में मैं मस्त की तरह

कुछ नहीं देखता बुलंद और पस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगे

वो होंगे कोई और मर जाने वाले

जिगर मुरादाबादी

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से इंसाँ आश्ना होता

कुछ मरने का ग़म होता जीने का मज़ा होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से

मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते

फ़रहत एहसास

मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज

इश्क़ का बीमार क्या जाने दवा क्या चीज़ है

बहादुर शाह ज़फ़र

हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ

इश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें

जिगर मुरादाबादी

होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है

इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है

निदा फ़ाज़ली

ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले

सर-ब-सर इस में ज़ियाँ था मुझे मालूम था

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई

इस लिए मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है

बशीर बद्र

तल्ख़ियाँ इस में बहुत कुछ हैं मज़ा कुछ भी नहीं

ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं

कलीम आजिज़

इश्क़ का घर है 'मीर' से आबाद

ऐसे फिर ख़ानमाँ-ख़राब कहाँ

मीर तक़ी मीर

हम तिरे शौक़ में यूँ ख़ुद को गँवा बैठे हैं

जैसे बच्चे किसी त्यौहार में गुम हो जाएँ

अहमद फ़राज़

इश्क़ की इब्तिदा तो जानते हैं

इश्क़ की इंतिहा नहीं मालूम

शफ़ीक़ जौनपुरी

मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो

मुझे मेरी रज़ा से माँगता है

परवीन शाकिर

जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है

मैं अब हर तसल्ली से घबरा रहा हूँ

एहसान दानिश

हुई आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़

सबब ये है कि मोहब्बत ज़माना-साज़ नहीं

अल्लामा इक़बाल

कोई आया तिरी झलक देखी

कोई बोला सुनी तिरी आवाज़

जोश मलीहाबादी

तर्क-ए-वफ़ा के ब'अद ये उस की अदा 'क़तील'

मुझ को सताए कोई तो उस को बुरा लगे

क़तील शिफ़ाई

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद

अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

अकबर इलाहाबादी

आरज़ू है कि तू यहाँ आए

और फिर उम्र भर जाए कहीं

नासिर काज़मी

कूचा-ए-इश्क़ में निकल आया

जिस को ख़ाना-ख़राब होना था

जिगर मुरादाबादी

इब्तिदा वो थी कि जीने के लिए मरता था मैं

इंतिहा ये है कि मरने की भी हसरत रही

माहिर-उल क़ादरी

अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की

मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई

नुशूर वाहिदी

तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही

तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ

साहिर लुधियानवी

तुझे कुछ इश्क़ उल्फ़त के सिवा भी याद है दिल

सुनाए जा रहा है एक ही अफ़्साना बरसों से

अब्दुल मजीद सालिक

अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं

इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख

अल्लामा इक़बाल

'फ़राज़' इश्क़ की दुनिया तो ख़ूब-सूरत थी

ये किस ने फ़ित्ना-ए-हिज्र-ओ-विसाल रक्खा है

अहमद फ़राज़

बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है

उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी

किराए के घर थे बदलते रहे

बशीर बद्र

तिरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी हुई

वो ज़िंदगी तो मोहब्बत की ज़िंदगी हुई

जिगर मुरादाबादी

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'

कि लगाए लगे और बुझाए बने

मिर्ज़ा ग़ालिब

इश्क़ में क़द्र-ए-ख़स्तगी की उम्मीद

'जिगर' होश की दवा कीजिए

जिगर बरेलवी

कभू रोना कभू हँसना कभू हैरान हो जाना

मोहब्बत क्या भले-चंगे को दीवाना बनाती है

ख़्वाजा मीर दर्द

तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए

जहाँ में काम थे जितने तमाम भूल गए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की

उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की

परवीन शाकिर

इश्क़ उस दर्द का नहीं क़ाइल

जो मुसीबत की इंतिहा हुआ

जोश मलसियानी

इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो

इशरत-ए-वस्ल बने या ग़म-ए-हिज्राँ हो जाए

फ़िराक़ गोरखपुरी

दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद

महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी

नासिर काज़मी

तुझ में और मुझ में तअल्लुक़ है वही

है जो रिश्ता साज़ और मिज़राब में

बशर नवाज़

ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक

लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के

ख़ुमार बाराबंकवी

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं

हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं

क़तील शिफ़ाई

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी मुश्किल हो

तुम्हीं जिगर हो तुम्हीं जान हो तुम्हीं दिल हो

अफ़सर इलाहाबादी

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है

हकीम नासिर

मोहब्बत मर गई 'मुश्ताक़' लेकिन तुम मानोगे

मैं ये अफ़्वाह भी तुम को सुना कर देख लेता हूँ

अहमद मुश्ताक़

मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता है

कि आँसू ख़ुश्क हो जाते हैं तुग़्यानी नहीं जाती

जिगर मुरादाबादी

हम हैं उन से वो ग़ैर से मायूस

क्या मोहब्बत किसी को रास नहीं

अमीर रज़ा मज़हरी

मैं गया हूँ वहाँ तक तिरी तमन्ना में

जहाँ से कोई भी इम्कान-ए-वापसी रहे

महमूद गज़नी

मोहब्बत के लिए दिल ढूँढ कोई टूटने वाला

ये वो मय है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में

अल्लामा इक़बाल

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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