नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल 58
नज़्म 6
अशआर 33
ज़िंदगी क़रीब है किस क़दर जमाल से
जब कोई सँवर गया ज़िंदगी सँवर गई
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ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए
आइनों के दरमियाँ से आई है
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सरक कर आ गईं ज़ुल्फ़ें जो इन मख़मूर आँखों तक
मैं ये समझा कि मय-ख़ाने पे बदली छाई जाती है
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हम ने भी निगाहों से उन्हें छू ही लिया है
आईने का रुख़ जब वो इधर करते रहे हैं
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हस्ती का नज़ारा क्या कहिए मरता है कोई जीता है कोई
जैसे कि दिवाली हो कि दिया जलता जाए बुझता जाए
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पुस्तकें 38
चित्र शायरी 6
वीडियो 17
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