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इफ़्तिख़ार आरिफ़

1943 | इस्लामाबाद, पाकिस्तान

पाकिस्तान में अग्रणी शायरों में शामिल, अपनी सांस्कृतिक रूमानियत के लिए मशहूर।

पाकिस्तान में अग्रणी शायरों में शामिल, अपनी सांस्कृतिक रूमानियत के लिए मशहूर।

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ज़ल 61

नज़्म 42

अशआर 105

तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं

जान बहुत शर्मिंदा हैं

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ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है

ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है

दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है

आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है

दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ

कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए

ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं

फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं

नअत 6

पुस्तकें 36

चित्र शायरी 8

 

वीडियो 25

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इफ़्तिख़ार आरिफ़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ऑडियो 92

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

अज़ाब-ए-वहशत-ए-जाँ का सिला न माँगे कोई

अब भी तौहीन-ए-इताअत नहीं होगी हम से

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