सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
ग़ज़ल 1
अशआर 2
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
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सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
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कुछ दोस्त से उम्मीद न अंदेशा-ए-दुश्मन
होगा वही जो कुछ मिरी क़िस्मत में लिखा है
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कुछ दोस्त से उम्मीद न अंदेशा-ए-दुश्मन
होगा वही जो कुछ मिरी क़िस्मत में लिखा है
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