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ख़ुद-अज़िय्यती पर शेर

यूँ तो ब-ज़ाहिर अपने

आप को तकलीफ़ पहुँचाना और अज़िय्यत में मुब्तला करना एक ना-समझ में आने वाला ग़ैर फ़ित्री अमल है, लेकिन ऐसा होता है और ऐसे लम्हे आते हैं जब ख़ुद अज़िय्यती ही सुकून का बाइस बनती है। लेकिन ऐसा क्यूँ? इस सवाल का जवाब आपको शायरी में ही मिल सकता है। ख़ुद अज़िय्यती को मौज़ू बनाने वाले अशआर का एक इंतिख़ाब हम पेश कर रहे हैं।

रहा कोई तार दामन में

अब नहीं हाजत-ए-रफ़ू मुझ को

इक़बाल सुहैल

रफ़ू कर इसे बख़िया-गर ख़ुदा के लिए

कि चाक-ए-दिल से हवा ख़ुश-गवार आती है

जलील मानिकपूरी

सफ़र में हर क़दम रह रह के ये तकलीफ़ ही देते

बहर-सूरत हमें इन आबलों को फोड़ देना था

अंजुम इरफ़ानी

ऐसा करूँगा अब के गरेबाँ को तार तार

जो फिर किसी तरह से किसी से रफ़ू हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

'मुसहफ़ी' हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म

तेरे दिल में तो बहुत काम रफ़ू का निकला

व्याख्या

यह मुस्हफ़ी के मशहूर अशआर में से एक है। ख़्याल नाज़ुक है इसलिए लोग इसे पसंद करते हैं। इस शे'र में दो किरदार हैं, एक मुस्हफ़ी से गुफ़्तगू करने वाला और दूसरा ख़ुद मुस्हफ़ी।

हम तो ये समझते थे, में तअ'ज्जुब भी और अफ़सोस का इज़हार भी कि “होगा कोई ज़ख़्म” यानी कोई एक-आध आम सा या छोटा सा ज़ख़्म होगा जो ख़ुदबख़ुद भर जाएगा। रफ़ू करने के मानी हैं, फटे हुए कपड़े को धागे से मरम्मत करना, फटी हुई जगह को भरना। उर्दू शायरी में “रफ़ू” लफ़्ज़ का बहुत इस्तेमाल हुआ है और इससे तात्पर्य आशिक़ के दिल के ज़ख़्मों की मरम्मत करना यानी टाँके लगाना है।

शायर से वाचक यानी बात करने वाला कहता है, मुस्हफ़ी तुमने तो ये जाना था कि तुम्हारे दिल में कोई छोटा सा ज़ख़्म होगा जो ख़ुद-ब-ख़ुद भर जाएगा मगर जब मैंने उसमें झांक कर देखा तो मैंने ये पाया कि तुम्हारे दिल में बहुत से ज़ख़्म मौजूद हैं जिन्हें मरम्मत की ज़रूरत है। ज़ाहिर है कि ये इश्क़ के ज़ख़्म हैं। कोई असली ज़ख़्म नहीं हैं कि जिन पर टाँके लगाए जाएं, जिन पर मरहम रखा जाए। इसलिए यहाँ रफ़ू से ये मतलब है कि इन ज़ख़्मों की मरम्मत तभी होगी जब शायर का महबूब उसकी तरफ़ तवज्जो देगा।

इस तरह से शे’र का भावार्थ ये निकलता है कि मुस्हफ़ी बज़ाहिर तुम्हारे दिल में लगता था कि कोई एक-आध ज़ख़्म होगा जो ख़ुदबख़ुद भर जाएगा मगर देखने पर मालूम हुआ कि अस्ल में तुमने इश्क़ में दिल पर बहुत ज़ख़्म खाए हैं और उन ज़ख़्मों की मरम्मत करना कोई आसान काम नहीं, अलबत्ता तुम्हारा महबूब अगर तुम्हारी तरफ़ लुत्फ़ की निगाहों से देखेगा तो ज़रूर ये ज़ख़्म भर सकते हैं।

शफ़क़ सुपुरी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

किया है चाक दिल तेग़-ए-तग़ाफ़ुल सीं तुझ अँखियों नीं

निगह के रिश्ता सोज़न सूँ पलकाँ के रफ़ू कीजे

आबरू शाह मुबारक

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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