Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

CANCEL DOWNLOAD SHER
Mirza Ghalib's Photo'

Mirza Ghalib

1797 - 1869 | Delhi, India

Legendary Urdu poet occupying a place of pride in worldwide literature. One of the most quotable poets having couplets for almost all situations of life

Legendary Urdu poet occupying a place of pride in worldwide literature. One of the most quotable poets having couplets for almost all situations of life

Sher of Mirza Ghalib

432.7K
Favorite

SORT BY

ham ko ma.alūm hai jannat haqīqat lekin

dil ke ḳhush rakhne ko 'ġhālib' ye ḳhayāl achchhā hai

hum ko malum hai jannat ki haqiqat lekin

dil ke KHush rakhne ko 'ghaalib' ye KHayal achchha hai

ishq ne 'ġhālib' nikammā kar diyā

varna ham bhī aadmī the kaam ke

Ghalib, a worthless person, this love has made of me

otherwise a man of substance I once used to be

ishq ne 'ghaalib' nikamma kar diya

warna hum bhi aadmi the kaam ke

Ghalib, a worthless person, this love has made of me

otherwise a man of substance I once used to be

mohabbat meñ nahīñ hai farq jiine aur marne

usī ko dekh kar jiite haiñ jis kāfir pe dam nikle

In love there is no difference 'tween life and death do know

The very one for whom I die, life too does bestow

mohabbat mein nahin hai farq jine aur marne ka

usi ko dekh kar jite hain jis kafir pe dam nikle

In love there is no difference 'tween life and death do know

The very one for whom I die, life too does bestow

is sādgī pe kaun na mar jaa.e ai ḳhudā

laḌte haiñ aur haath meñ talvār bhī nahīñ

is sadgi pe kaun na mar jae ai KHuda

laDte hain aur hath mein talwar bhi nahin

hazāroñ ḳhvāhisheñ aisī ki har ḳhvāhish pe dam nikle

bahut nikle mire armān lekin phir bhī kam nikle

I have a thousand yearnings , each one afflicts me so

Many were fulfilled for sure, not enough although

hazaron KHwahishen aisi ki har KHwahish pe dam nikle

bahut nikle mere arman lekin phir bhi kam nikle

I have a thousand yearnings , each one afflicts me so

Many were fulfilled for sure, not enough although

un ke dekhe se jo aa jaatī hai muñh par raunaq

vo samajhte haiñ ki bīmār haal achchhā hai

un ke dekhe se jo aa jati hai munh par raunaq

wo samajhte hain ki bimar ka haal achchha hai

ye na thī hamārī qismat ki visāl-e-yār hotā

agar aur jiite rahte yahī intizār hotā

That my love be consummated, fate did not ordain

Living longer had I waited, would have been in vain

ye na thi hamari qismat ki visal-e-yar hota

agar aur jite rahte yahi intizar hota

That my love be consummated, fate did not ordain

Living longer had I waited, would have been in vain

ishq par zor nahīñ hai ye vo ātish 'ġhālib'

ki lagā.e na lage aur bujhā.e na bane

One has no power over Love, it is that flame, to wit,

Which neither can be set alight, nor extinguished once lit

ishq par zor nahin hai ye wo aatish 'ghaalib'

ki lagae na lage aur bujhae na bane

One has no power over Love, it is that flame, to wit,

Which neither can be set alight, nor extinguished once lit

ragoñ meñ dauḌte phirne ke ham nahīñ qaa.il

jab aañkh se na Tapkā to phir lahū kyā hai

merely because it courses through the veins, I'm not convinced

if it drips not from one's eyes blood cannot be held true

ragon mein dauDte phirne ke hum nahin qail

jab aankh hi se na Tapka to phir lahu kya hai

merely because it courses through the veins, I'm not convinced

if it drips not from one's eyes blood cannot be held true

ishrat-e-qatra hai dariyā meñ fanā ho jaanā

dard had se guzarnā hai davā ho jaanā

ishrat-e-qatra hai dariya mein fana ho jaana

dard ka had se guzarna hai dawa ho jaana

vo aa.e ghar meñ hamāre ḳhudā qudrat hai

kabhī ham un ko kabhī apne ghar ko dekhte haiñ

wo aae ghar mein hamare KHuda ki qudrat hai

kabhi hum un ko kabhi apne ghar ko dekhte hain

ham ko un se vafā hai ummīd

jo nahīñ jānte vafā kyā hai

From her I hope for constancy

who knows it not, to my dismay

hum ko un se wafa ki hai ummid

jo nahin jaante wafa kya hai

From her I hope for constancy

who knows it not, to my dismay

na thā kuchh to ḳhudā thā kuchh na hotā to ḳhudā hotā

Duboyā mujh ko hone ne na hotā maiñ to kyā hotā

In nothingness God was there, if naught he would persist

Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist

EXPLANATION

यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति जाने क्या होती।

इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।

हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।

इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला तन्हा मौजूद रहेगा।

इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।

Shafaq Sopori

na tha kuchh to KHuda tha kuchh na hota to KHuda hota

Duboya mujh ko hone ne na hota main to kya hota

In nothingness God was there, if naught he would persist

Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist

EXPLANATION

यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति जाने क्या होती।

इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।

हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।

इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला तन्हा मौजूद रहेगा।

इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।

Shafaq Sopori

be-ḳhudī be-sabab nahīñ 'ġhālib'

kuchh to hai jis parda-dārī hai

be-KHudi be-sabab nahin 'ghaalib'

kuchh to hai jis ki parda-dari hai

rañj se ḳhūgar huā insāñ to miT jaatā hai rañj

mushkileñ mujh par paḌīñ itnī ki āsāñ ho ga.iiñ

ranj se KHugar hua insan to miT jata hai ranj

mushkilen mujh par paDin itni ki aasan ho gain

ishq se tabī.at ne ziist mazā paayā

dard davā paa.ī dard-e-be-davā paayā

my being did, from love's domain, the joy of life procure

obtained such cure for life's travails, which itself had no cure

ishq se tabiat ne zist ka maza paya

dard ki dawa pai dard-e-be-dawa paya

my being did, from love's domain, the joy of life procure

obtained such cure for life's travails, which itself had no cure

aah ko chāhiye ik umr asar hote tak

kaun jiitā hai tirī zulf ke sar hote tak

A prayer needs a lifetime, an answer to obtain

who can live until the time that you decide to deign

aah ko chahiye ek umr asar hote tak

kaun jita hai teri zulf ke sar hote tak

A prayer needs a lifetime, an answer to obtain

who can live until the time that you decide to deign

reḳhte ke tumhīñ ustād nahīñ ho 'ġhālib'

kahte haiñ agle zamāne meñ koī 'mīr' bhī thā

reKHte ke tumhin ustad nahin ho 'ghaalib'

kahte hain agle zamane mein koi 'mir' bhi tha

ā.īna kyuuñ na duuñ ki tamāshā kaheñ jise

aisā kahāñ se lā.ūñ ki tujh kaheñ jise

aaina kyun na dun ki tamasha kahen jise

aisa kahan se laun ki tujh sa kahen jise

haiñ aur bhī duniyā meñ suḳhan-var bahut achchhe

kahte haiñ ki 'ġhālib' hai andāz-e-bayāñ aur

hain aur bhi duniya mein suKHan-war bahut achchhe

kahte hain ki 'ghaalib' ka hai andaz-e-bayan aur

maut ek din muayyan hai

niind kyuuñ raat bhar nahīñ aatī

when for death a day has been ordained

what reason that I cannot sleep all night?

maut ka ek din muayyan hai

nind kyun raat bhar nahin aati

when for death a day has been ordained

what reason that I cannot sleep all night?

bas-ki dushvār hai har kaam āsāñ honā

aadmī ko bhī muyassar nahīñ insāñ honā

Tis difficult that every goal be easily complete

For a man, too, to be human, is no easy feat

bas-ki dushwar hai har kaam ka aasan hona

aadmi ko bhi muyassar nahin insan hona

Tis difficult that every goal be easily complete

For a man, too, to be human, is no easy feat

ham ne maanā ki taġhāful na karoge lekin

ḳhaak ho jā.eñge ham tum ko ḳhabar hote tak

Agreed, you won't ignore me, I know but then again

Into dust will I be turned, your audience till I gain

hum ne mana ki taghaful na karoge lekin

KHak ho jaenge hum tum ko KHabar hote tak

Agreed, you won't ignore me, I know but then again

Into dust will I be turned, your audience till I gain

ye kahāñ dostī hai ki bane haiñ dost nāseh

koī chārasāz hotā koī ġham-gusār hotā

ye kahan ki dosti hai ki bane hain dost naseh

koi chaarasaz hota koi gham-gusar hota

pūchhte haiñ vo ki 'ġhālib' kaun hai

koī batlāo ki ham batlā.eñ kyā

puchhte hain wo ki 'ghaalib' kaun hai

koi batlao ki hum batlaen kya

dil to hai na sañg-o-ḳhisht dard se bhar na aa.e kyuuñ

ro.eñge ham hazār baar koī hameñ satā.e kyuuñ

it's just a heart, no stony shard; why shouldn't it fill with pain

i will cry a thousand times,why should someone complain?

dil hi to hai na sang-o-KHisht dard se bhar na aae kyun

roenge hum hazar bar koi hamein satae kyun

it's just a heart, no stony shard; why shouldn't it fill with pain

i will cry a thousand times,why should someone complain?

bāzīcha-e-atfāl hai duniyā mire aage

hotā hai shab-o-roz tamāshā mire aage

just like a child's playground this world appears to me

every single night and day, this spectacle I see

bazicha-e-atfal hai duniya mere aage

hota hai shab-o-roz tamasha mere aage

just like a child's playground this world appears to me

every single night and day, this spectacle I see

merī qismat meñ ġham gar itnā thā

dil bhī yā-rab ka.ī diye hote

if so much pain my fate ordained

I, many hearts should have obtained

meri qismat mein gham gar itna tha

dil bhi ya-rab kai diye hote

if so much pain my fate ordained

I, many hearts should have obtained

kab vo suntā hai kahānī merī

aur phir vo bhī zabānī merī

when does she ever heed my state

and that too then when I narrate

kab wo sunta hai kahani meri

aur phir wo bhi zabani meri

when does she ever heed my state

and that too then when I narrate

kaaba kis muñh se jāoge 'ġhālib'

sharm tum ko magar nahīñ aatī

Ghalib,what face will you to the kaabaa take

when you are not ashamed and not contrite

kaba kis munh se jaoge 'ghaalib'

sharm tum ko magar nahin aati

Ghalib,what face will you to the kaabaa take

when you are not ashamed and not contrite

aage aatī thī hāl-e-dil pe hañsī

ab kisī baat par nahīñ aatī

nothing now could even make me smile,

I once could laugh at my heart's own plight

aage aati thi haal-e-dil pe hansi

ab kisi baat par nahin aati

nothing now could even make me smile,

I once could laugh at my heart's own plight

DhūñDtā hai phir vahī fursat ki raat din

baiThe raheñ tasavvur-e-jānāñ kiye hue

Again this heart seeks those days of leisure as of yore

Sitting just enmeshed in thoughts of my paramour

ji DhunDta hai phir wahi fursat ki raat din

baiThe rahen tasawwur-e-jaanan kiye hue

Again this heart seeks those days of leisure as of yore

Sitting just enmeshed in thoughts of my paramour

karne ga.e the us se taġhāful ham gila

ek nigāh ki bas ḳhaak ho ga.e

karne gae the us se taghaful ka hum gila

ki ek hi nigah ki bas KHak ho gae

ham vahāñ haiñ jahāñ se ham ko bhī

kuchh hamārī ḳhabar nahīñ aatī

hum wahan hain jahan se hum ko bhi

kuchh hamari KHabar nahin aati

kahūñ kis se maiñ ki kyā hai shab-e-ġham burī balā hai

mujhe kyā burā thā marnā agar ek baar hotā

of gloomy nights alone and sad, to whom should I complain?

Dying just once would not be bad, but each evening again?

kahun kis se main ki kya hai shab-e-gham buri bala hai

mujhe kya bura tha marna agar ek bar hota

of gloomy nights alone and sad, to whom should I complain?

Dying just once would not be bad, but each evening again?

marte haiñ aarzū meñ marne

maut aatī hai par nahīñ aatī

I die yearning as I hope for death

Death does come to me but then not quite

marte hain aarzu mein marne ki

maut aati hai par nahin aati

I die yearning as I hope for death

Death does come to me but then not quite

ā.īna dekh apnā muñh le ke rah ga.e

sāhab ko dil na dene pe kitnā ġhurūr thā

aaina dekh apna sa munh le ke rah gae

sahab ko dil na dene pe kitna ghurur tha

har ek baat pe kahte ho tum ki kyā hai

tumhīñ kaho ki ye andāz-e-guftugū kyā hai

at every turn you question me, asking what are you?'

tell me pray what manner of speech do you pursue?

har ek baat pe kahte ho tum ki tu kya hai

tumhin kaho ki ye andaz-e-guftugu kya hai

at every turn you question me, asking what are you?'

tell me pray what manner of speech do you pursue?

dard minnat-kash-e-davā na huā

maiñ na achchhā huā burā na huā

my pain did not seek favors from any opiate

I don't mind the fact that I did not recuperate

dard minnat-kash-e-dawa na hua

main na achchha hua bura na hua

my pain did not seek favors from any opiate

I don't mind the fact that I did not recuperate

phir usī bevafā pe marte haiñ

phir vahī zindagī hamārī hai

dying for that faithless one again

my life, the same, does then remain

phir usi bewafa pe marte hain

phir wahi zindagi hamari hai

dying for that faithless one again

my life, the same, does then remain

kahte haiñ jiite haiñ ummīd pe log

ham ko jiine bhī ummīd nahīñ

they say on hope people survive

no hope have I of staying alive

kahte hain jite hain ummid pe log

hum ko jine ki bhi ummid nahin

they say on hope people survive

no hope have I of staying alive

hogā koī aisā bhī ki 'ġhālib' ko na jaane

shā.ir to vo achchhā hai pa badnām bahut hai

hoga koi aisa bhi ki 'ghaalib' ko na jaane

shair to wo achchha hai pa badnam bahut hai

mire qatl ke ba.ad us ne jafā se tauba

haa.e us zūd-pashīmāñ pashīmāñ honā

After she had slain me then from torture she forswore

Alas! the one now quickly shamed was not so before

ki mere qatl ke baad us ne jafa se tauba

hae us zud-pashiman ka pashiman hona

After she had slain me then from torture she forswore

Alas! the one now quickly shamed was not so before

'ġhālib' burā na maan jo vaa.iz burā kahe

aisā bhī koī hai ki sab achchhā kaheñ jise

'ghaalib' bura na man jo waiz bura kahe

aisa bhi koi hai ki sab achchha kahen jise

koī mere dil se pūchhe tire tīr-e-nīm-kash ko

ye ḳhalish kahāñ se hotī jo jigar ke paar hotā

what pain your arrow, partly drawn, inflicts upon my heart

cleanly through if it had gone, would it this sting impart?

koi mere dil se puchhe tere tir-e-nim-kash ko

ye KHalish kahan se hoti jo jigar ke par hota

what pain your arrow, partly drawn, inflicts upon my heart

cleanly through if it had gone, would it this sting impart?

tum salāmat raho hazār baras

har baras ke hoñ din pachās hazār

tum salamat raho hazar baras

har baras ke hon din pachas hazar

sādiq huuñ apne qaul 'ġhālib' ḳhudā gavāh

kahtā huuñ sach ki jhuuT aadat nahīñ mujhe

sadiq hun apne qaul ka 'ghaalib' KHuda gawah

kahta hun sach ki jhuT ki aadat nahin mujhe

kahāñ mai-ḳhāne darvāza 'ġhālib' aur kahāñ vaa.iz

par itnā jānte haiñ kal vo jaatā thā ki ham nikle

Wherefrom the 'saintly' priest, and where the tavern's door

But as I entered he was leaving, this much I do know

kahan mai-KHane ka darwaza 'ghaalib' aur kahan waiz

par itna jaante hain kal wo jata tha ki hum nikle

Wherefrom the 'saintly' priest, and where the tavern's door

But as I entered he was leaving, this much I do know

kitne shīrīñ haiñ tere lab ki raqīb

gāliyāñ khā ke be-mazā na huā

how sweet are your honeyed lips, that even though my foe

was abused by you, is not, in an unhappy state

kitne shirin hain tere lab ki raqib

galiyan kha ke be-maza na hua

how sweet are your honeyed lips, that even though my foe

was abused by you, is not, in an unhappy state

qaid-e-hayāt o band-e-ġham asl meñ donoñ ek haiñ

maut se pahle aadmī ġham se najāt paa.e kyuuñ

prison of life and sorrow's chains in truth are just the same

then relief from pain, ere death,why should man obtain

qaid-e-hayat o band-e-gham asl mein donon ek hain

maut se pahle aadmi gham se najat pae kyun

prison of life and sorrow's chains in truth are just the same

then relief from pain, ere death,why should man obtain

Recitation

Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

Register for free
Speak Now