ख़्वाब पर शेर
ख़्वाब सिर्फ़ वही नहीं
है जिस से हम नींद की हालत में गुज़रते हैं बल्कि जागते हुए भी हम ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा रंग बिरंगे ख़्वाबों में गुज़ारते हैं और उन ख़्वाबों की ताबीरों के पीछे सरगर्दां रहते हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब ऐसे ही शेरों पर मुश्तमिल है जो ख़ाब और ताबीर की कश्मकश में फंसे इन्सान की रूदाद सुनाते हैं। ये शायरी पढ़िए। इस में आपको अपने ख़्वाबों के नुक़ूश भी झिलमिलाते हुए नज़र आएँगे।
ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है
खिला दे देखिए क्या क्या गुल-ए-ताबीर-ए-ख़्वाब अपना
दरवाज़ा खटखटा के सितारे चले गए
ख़्वाबों की शाल ओढ़ के मैं ऊँघता रहा
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
हाथ लगाते ही मिट्टी का ढेर हुए
कैसे कैसे रंग भरे थे ख़्वाबों में
पर कतर पाई जब न ख़्वाबों के
बंद ही कर दीं खिड़कियाँ मैं ने
बिन देखे उस के जावे रंज ओ अज़ाब क्यूँ कर
वो ख़्वाब में तो आवे पर आवे ख़्वाब क्यूँ कर
आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
लेकिन ख़बर नहीं कि बुलाया कहाँ गया
फिर नई हिजरत कोई दरपेश है
ख़्वाब में घर देखना अच्छा नहीं
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
'अल्वी' प्यारे देखो साला दिन निकला
है बहुत कुछ मिरी ताबीर की दुनिया तुझ में
फिर भी कुछ है कि जो ख़्वाबों के जहाँ से कम है
ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ
बे-ख़ुदी में भी मुझे याद तिरी याद की है
मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
भरी रहे अभी आँखों में उस के नाम की नींद
वो ख़्वाब है तो यूँही देखने से गुज़रेगा
तू जिस के ख़्वाब में आया हो वक़्त-ए-सुब्ह सनम
नमाज़-ए-सुब्ह को किस तरह वो क़ज़ा न करे
सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
काश तुझ को भी इक झलक देखूँ
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो
या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो
ये महशर-ए-ख़याल कि दुनिया कहें जिसे
बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं
कुछ ख़्वाब मिरे ऐन-जवानी में मरे हैं
अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
दोस्तो आओ कि कुछ ख़्वाब दिखाते हैं तुम्हें
ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा
और मैं उसी चेहरे से नए ख़्वाब सजाऊँ
अभी वो आँख भी सोई नहीं है
अभी वो ख़्वाब भी जागा हुआ है
ऐ शब-ए-ख़्वाब ये हंगाम-ए-तहय्युर क्या है
ख़ुद को गर नींद से बेदार किया है मैं ने
ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
दिन ढलते ही दिल डूबने लगता है हमारा
टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
आँखों को ठंडक ख़्वाबों को गिरानी दे
जी लगा रक्खा है यूँ ताबीर के औहाम से
ज़िंदगी क्या है मियाँ बस एक घर ख़्वाबों का है
ज़ियारत होगी काबे की यही ताबीर है इस की
कई शब से हमारे ख़्वाब में बुत-ख़ाना आता है
ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है
आँख खुल जाए तो मुसीबत है
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है
तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
मगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
ख़ुदा करे कि खुले एक दिन ज़माने पर
मिरी कहानी में जो इस्तिआरा ख़्वाब का है
कुचल के फेंक दो आँखों में ख़्वाब जितने हैं
इसी सबब से हैं हम पर अज़ाब जितने हैं
वही है ख़्वाब जिसे मिल के सब ने देखा था
अब अपने अपने क़बीलों में बट के देखते हैं
मैं अपनी अंगुश्त काटता था कि बीच में नींद आ न जाए
अगरचे सब ख़्वाब का सफ़र था मगर हक़ीक़त में आ बसा हूँ
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
इक ख़्वाब ही तो था जो फ़रामोश हो गया
इक याद ही तो थी जो भुला दी गई तो क्या
रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए
आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए
टूट कर रूह में शीशों की तरह चुभते हैं
फिर भी हर आदमी ख़्वाबों का तमन्नाई है
ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
पहलू में तुम आओ कि अभी रात बहुत है
हल कर लिया मजाज़ हक़ीक़त के राज़ को
पाई है मैं ने ख़्वाब की ताबीर ख़्वाब में
इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा
सच हुआ करती हैं इन ख़्वाबों की ताबीरें कहीं
किसी ख़याल का कोई वजूद हो शायद
बदल रहा हूँ मैं ख़्वाबों को तजरबा कर के
इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
एक ने अज्र दिया एक ने उजरत नहीं दी
इश्क़ उस का आन कर यक-बारगी सब ले गया
जान से आराम सर से होश और चश्मों से ख़्वाब