मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल 19
नज़्म 1
अशआर 23
देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएँगी लाशें
ढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा
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चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है
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वही क़ातिल वही मुंसिफ़ अदालत उस की वो शाहिद
बहुत से फ़ैसलों में अब तरफ़-दारी भी होती है
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दरिया के तलातुम से तो बच सकती है कश्ती
कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा
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उन्हें ठहरे समुंदर ने डुबोया
जिन्हें तूफ़ाँ का अंदाज़ा बहुत था
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पुस्तकें 54
चित्र शायरी 1
चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है उलझन घुटन हिरास तपिश कर्ब इंतिशार वो भीड़ है के साँस भी लेना मुहाल है आवारगी का हक़ है हवाओं को शहर में घर से चराग़ ले के निकलना मुहाल है बे-चेहरगी की भीड़ में गुम है हर इक वजूद आईना पूछता है कहाँ ख़द्द-ओ-ख़ाल है जिन में ये वस्फ़ हो कि छुपा लें हर एक दाग़ उन आइनों की आज बड़ी देख-भाल है परछाइयाँ क़दों से भी आगे निकल गईं सूरज के डूब जाने का अब एहतिमाल है कश्कोल-ए-चश्म ले के फिरो तुम न दर-ब-दर 'मंज़ूर' क़हत-ए-जिंस-ए-वफ़ा का ये साल है
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Malikzada Manzoor Ahmed Born on 17th Oct,1929, in Bhidhunpur, Malikzada Manzoor showed his literary talent at an early age. He acquired PG degree in Urdu & English and later did Ph.D in Urdu literature. He is extremely good at recitation and has recited many ghazals/nazams at mushairas and such other literary functions. Malikzada Manzoor retired as professor, department of Urdu, Lucknow University. He is the author of several books and had also worked as an editor 'Imkaan" (monthly Urdu literary Journal from Lucknow). मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
