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रद करें डाउनलोड शेर

आँख पर शेर

आँखें हमारे जिस्म का

सिर्फ़ एक हिस्सा नहीं बल्कि हज़ारों दिलकश ख़्वाबों, शायराना ख़यालों का एक क़ीमती ख़ज़ाना भी हैं। शायरों ने महबूब की आँखों की तारीफ़ में जो कुछ लिखा और जितनी बड़ी तादाद में लिखा है वो हैरान करने वाला है। आँख शायरी ऐसे ख़ूबसूरत अशआर का एक गुलदस्ता है जिसे आप ज़रूर पसंद फ़रमाँऐं।

यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए

बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया

फ़ानी बदायुनी

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं

ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं

बशीर बद्र

वो जिस मुंडेर पे छोड़ आया अपनी आँखें मैं

चराग़ होता तो लौ भूल कर चला जाता

जमाल एहसानी

जब डूब के मरना है तो क्या सोच रहे हो

इन झील सी आँखों में उतर क्यूँ नहीं जाते

शाहिद कमाल

लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से

तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से

जाँ निसार अख़्तर

असर पूछिए साक़ी की मस्त आँखों का

ये देखिए कि कोई होश्यार बाक़ी है

बेताब अज़ीमाबादी

उन मद-भरी आँखों की तारीफ़ हो क्या ज़ाहिद

देखो तो हैं दो साग़र समझो तो हैं मय-ख़ाना

दुआ डबाईवी

होता है राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इन्हीं से फ़ाश

आँखें ज़बाँ नहीं हैं मगर बे-ज़बाँ नहीं

असग़र गोंडवी

जाए दिल आप का भी और किसी पर

देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से

फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है

ख़ुमार बाराबंकवी

आँखों में जो बात हो गई है

इक शरह-ए-हयात हो गई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

उस की आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसाँ

दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे

इरफ़ान सिद्दीक़ी

अब अपने चेहरे पर दो पत्थर से सजाए फिरता हूँ

आँसू ले कर बेच दिया है आँखों की बीनाई को

शहज़ाद अहमद

जो उन मासूम आँखों ने दिए थे

वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

कब उन आँखों का सामना हुआ

तीर जिन का कभी ख़ता हुआ

मुबारक अज़ीमाबादी

तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन

ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं

जिगर मुरादाबादी

कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'

साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा

आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो

नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है

जाँ निसार अख़्तर

कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम

आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं

जिगर मुरादाबादी

जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं

ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं

अब्दुल हमीद अदम

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

मुनव्वर राना

तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं

हाँ मुझी को ख़राब होना था

जिगर मुरादाबादी

बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की

वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है

मिर्ज़ा ग़ालिब

आँखें साक़ी की जब से देखी हैं

हम से दो घूँट पी नहीं जाती

जलील मानिकपूरी

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है

तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना

मुनव्वर राना

रात को सोना सोना सब बराबर हो गया

तुम आए ख़्वाब में आँखों में ख़्वाब आया तो क्या

जलील मानिकपूरी

मज़ा लेंगे हम देख कर तेरी आँखें

उन्हें ख़ूब तू नामा-बर देख लेना

जलील मानिकपूरी

लोग करते हैं ख़्वाब की बातें

हम ने देखा है ख़्वाब आँखों से

साबिर दत्त

हैं मिरी राह का पत्थर मिरी आँखों का हिजाब

ज़ख़्म बाहर के जो अंदर नहीं जाने देते

ख़ुर्शीद रिज़वी

किसी को क़िस्सा-ए-पाकी-ए-चश्म याद नहीं

ये आँखें कौन सी बरसात में नहाई थीं

मुसव्विर सब्ज़वारी

भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल

इक ख़्वाब-ए-तमन्ना तिरी ग़फ़लत के बराबर

अबरार अहमद

किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी

ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे

बशीर बद्र

ढूँडती हैं जिसे मिरी आँखें

वो तमाशा नज़र नहीं आता

अमजद हैदराबादी

इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में

आईने आँखों के धुँदले हो गए

नासिर काज़मी

उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है

दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है

अख़्तर शीरानी

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में

तिरी याद आँखें दुखाने लगी

आदिल मंसूरी

आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई

आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई

शहरयार

मैं डर रहा हूँ तुम्हारी नशीली आँखों से

कि लूट लें किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे

जलील मानिकपूरी

हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था

अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है

अख़्तर अंसारी

ये ख़द्द-ओ-ख़ाल ये गेसू ये सूरत-ए-ज़ेबा

सभी का हुस्न है अपनी जगह मगर आँखें

ख़ान रिज़वान

आँखों में उस की मैं ने आख़िर मलाल देखा

किन किन बुलंदियों पर अपना ज़वाल देखा

मोहम्मद आज़म

आँखें जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे

क्यूँ खिड़कियों से झाँक रही है क़ज़ा मुझे

इमदाद अली बहर

बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें

अब्र छट जाए तो सूरज से मिलाना आँखें

शकील बदायूनी

अपनी आँखों की बद-नसीबी हाए

इक इक रोज़ हादिसा देखा

सदा अम्बालवी

हैं तसव्वुर में उस के आँखें बंद

लोग जानें हैं ख़्वाब करता हूँ

मीर मोहम्मदी बेदार

वो सूरत दिखाते हैं मिलते हैं गले कर

आँखें शाद होतीं हैं दिल मसरूर होता है

लाला माधव राम जौहर

कभी ज़ियादा कभी कम रहा है आँखों में

लहू का सिलसिला पैहम रहा है आँखों में

शाज़ तमकनत

लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए

हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो

लाला माधव राम जौहर

लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं

अपनी आँखों को झुकाए रखना

अख़्तर होशियारपुरी

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ

आँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ

बशीर बद्र

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