Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

दीदार पर शेर

इश्क़ बहुत सारी ख़्वाहिशों

का ख़ूबसूरत गुलदस्ता है। दीदार, तमन्ना का ऐसा ही एक हसीन फूल है जिसकी ख़ुश्बू आशिक़ को बेचैन किए रखती है। महबूब को देख लेने भर का असर आशिक़ के दिल पर क्या होता है यह शायर से बेहतर भला कौन जान सकता है। आँखें खिड़की, दरवाज़े और रास्ते से हटने का नाम न लें ऐसी शदीद ख़्वाहिश होती है दीदार की। तो आइये इसी दीदार शायरी से कुछ चुनिंदा अशआर की झलक देखते हैः

देखने के लिए सारा आलम भी कम

चाहने के लिए एक चेहरा बहुत

असअ'द बदायुनी

कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा

हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया

हैदर अली आतिश

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात

जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

मेरी आँखें और दीदार आप का

या क़यामत गई या ख़्वाब है

आसी ग़ाज़ीपुरी

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती

तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती

अनवर शऊर

देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से

तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से

जुनैद हज़ीं लारी

तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना

मिरी आँखों पे अपनी दीद की इक शाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

ज़ाहिर की आँख से तमाशा करे कोई

हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई

अल्लामा इक़बाल

तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता

ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं

अहमद फ़राज़

सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी

मुझे डर है तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए

जिगर मुरादाबादी

हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं

तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं

अमीर मीनाई

दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर

दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग

आज़ाद अंसारी

वो सूरत दिखाते हैं मिलते हैं गले कर

आँखें शाद होतीं हैं दिल मसरूर होता है

लाला माधव राम जौहर

क्यूँ जल गया ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर

मिर्ज़ा ग़ालिब

वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं

मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में

अमीर मीनाई

अब और देर कर हश्र बरपा करने में

मिरी नज़र तिरे दीदार को तरसती है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

जो और कुछ हो तिरी दीद के सिवा मंज़ूर

तो मुझ पे ख़्वाहिश-ए-जन्नत हराम हो जाए

हसरत मोहानी

आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए

ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

शुजा ख़ावर

तिरा दीदार हो हसरत बहुत है

चलो कि नींद भी आने लगी है

साजिद प्रेमी

मिरा जी तो आँखों में आया ये सुनते

कि दीदार भी एक दिन आम होगा

मीर तक़ी मीर

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

ईद है और हम को ईद नहीं

बेखुद बदायुनी

कासा-ए-चश्म ले के जूँ नर्गिस

हम ने दीदार की गदाई की

मीर तक़ी मीर

उस को देखा तो ये महसूस हुआ

हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले

महमूद शाम

इस क़मर को कभी तो देखेंगे

तीस दिन होते हैं महीने के

लाला माधव राम जौहर

उठ नक़ाब-ए-यार कि बैठे हैं देर से

कितने ग़रीब दीदा-ए-पुर-नम लिए हुए

जलील मानिकपूरी

आईना कभी क़ाबिल-ए-दीदार होवे

गर ख़ाक के साथ उस को सरोकार होवे

इश्क़ औरंगाबादी

जैसे जैसे दर-ए-दिलदार क़रीब आता है

दिल ये कहता है कि पहुँचूँ मैं नज़र से पहले

जलील मानिकपूरी

आँख उठा कर उसे देखूँ हूँ तो नज़रों में मुझे

यूँ जताता है कि क्या तुझ को नहीं डर मेरा

जुरअत क़लंदर बख़्श

'दर्द' के मिलने से यार बुरा क्यूँ माना

उस को कुछ और सिवा दीद के मंज़ूर था

ख़्वाजा मीर दर्द

इलाही क्या खुले दीदार की राह

उधर दरवाज़े बंद आँखें इधर बंद

लाला माधव राम जौहर

आफ़रीं तुझ को हसरत-ए-दीदार

चश्म-ए-तर से ज़बाँ का काम लिया

जलील मानिकपूरी

देखना हसरत-ए-दीदार इसे कहते हैं

फिर गया मुँह तिरी जानिब दम-ए-मुर्दन अपना

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर

तिरी पहली दीद के साथ ही वो फ़ुसूँ भी था

तुझे देख कर तुझे देखना मुझे गया

इक़बाल कौसर

टूटें वो सर जिस में तेरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं

फूटें वो आँखें कि जिन को दीद का लपका नहीं

हक़ीर

मैं कामयाब-ए-दीद भी महरूम-ए-दीद भी

जल्वों के इज़दिहाम ने हैराँ बना दिया

असग़र गोंडवी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए