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आज़ाद अंसारी

1871 - 1942 | हैदराबाद, भारत

अल्ताफ़ हुसैन हाली के प्रमुख शिष्य

अल्ताफ़ हुसैन हाली के प्रमुख शिष्य

आज़ाद अंसारी

ग़ज़ल 4

 

अशआर 9

हम को मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल

ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या था

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दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर

दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग

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सज़ाएँ तो हर हाल में लाज़मी थीं

ख़ताएँ कर के पशेमानीयाँ हैं

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वो काफ़िर-निगाहें ख़ुदा की पनाह

जिधर फिर गईं फ़ैसला हो गया

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बंदा-परवर मैं वो बंदा हूँ कि बहर-ए-बंदगी

जिस के आगे सर झुका दूँगा ख़ुदा हो जाएगा

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पुस्तकें 2

 

चित्र शायरी 1

 

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