अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल 52
अशआर 47
कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं
अपनी आँखों को झुकाए रखना
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
न जाने लोग ठहरते हैं वक़्त-ए-शाम कहाँ
हमें तो घर में भी रुकने का हौसला न हुआ
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
चमन के रंग-ओ-बू ने इस क़दर धोका दिया मुझ को
कि मैं ने शौक़-ए-गुल-बोसी में काँटों पर ज़बाँ रख दी
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए