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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

ख़ुद्दारी पर शेर

ख़ुद्दारी या आत्मसम्मान

वह पूंजी है जिस पर शायर हमेशा नाज़ करता रहा है और इसे जताने में भी कभी झिझक महसूस नहीं की। अपने वुजूद की अहमियत को समझना और उसे पूरा-पूरा सम्मान देना शायरों की ख़ास पहचान भी रही है। शायर सब कुछ बर्दाश्त कर लेता है लेकिन अपनी ख़ुद्दारी पर लगने वाली हल्की सी चोट से भी तिलमिला उठता है। खुद्दारी शायरी कई ख़ूबसूरत मिसालों से भरी हैः

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है

किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

जावेद अख़्तर

इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम

हट कर चले हैं रहगुज़र-ए-कारवाँ से हम

असरार-उल-हक़ मजाज़

दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है

मौत मिले तो मुफ़्त लूँ हस्ती की क्या हस्ती है

फ़ानी बदायुनी

वक़्त के साथ बदलना तो बहुत आसाँ था

मुझ से हर वक़्त मुख़ातिब रही ग़ैरत मेरी

अमीर क़ज़लबाश

मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर

आदमी इस दौर में ख़ुद्दार हो सकता नहीं

इक़बाल साजिद

गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने दिया

कोई एहसान ज़माने का उठाया ही नहीं

हसन नईम

किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी

मदद मिले मिले आबरू तो जाती है

अज्ञात

क्या मालूम किसी की मुश्किल

ख़ुद-दारी है या ख़ुद-बीनी

हैरत शिमलवी

किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है

ख़ुदा के घर भी जाएँगे बिन बुलाए हुए

अमीर मीनाई

हम तिरे ख़्वाबों की जन्नत से निकल कर गए

देख तेरा क़स्र-ए-आली-शान ख़ाली कर दिया

ऐतबार साजिद

जिस दिन मिरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके

उस दिन ख़ुदा शिगाफ़ मिरे सर में डाल दे

कैफ़ भोपाली

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