तसव्वुर पर शेर
तसव्वुर या कल्पना की
ताक़त न होती तो इन्सान वह कारनामे नहीं अंजाम दे पाता जो इतिहास बनाते है। शायरी हो या इश्क़ तसव्वुर के बग़ैर मुमकिन नहीं। यह तसव्वुर ही तो है जिसकी बदौलत शायर को उसका माशूक़ हसीन तरीन लगता है। अगर आपको अब भी यक़ीन न आए तो तसव्वुर शायरी की ये चंद मिसालें पेश हैं :
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
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दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
याद आते हो तुम ख़ुद ही हम याद नहीं करते
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद
कट रही है ज़िंदगी आराम से
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
यूँ बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें
जैसे बरसात की रिम-झिम में समाँ होता है
जाने क्यूँ इक ख़याल सा आया
मैं न हूँगा तो क्या कमी होगी
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई
यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ
दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है
तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया
तेरे ख़याल के दीवार-ओ-दर बनाते हैं
हम अपने घर में भी तेरा ही घर बनाते हैं
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
तसव्वुर ज़ुल्फ़ का है और मैं हूँ
बला का सामना है और मैं हूँ
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू
दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू
चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या
इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें
आ गए याद कई नाम हसीनाओं के
हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर
जिस की तस्वीर है ख़याल अपना
मेरे पहलू में तुम आओ ये कहाँ मेरे नसीब
ये भी क्या कम है तसव्वुर में तो आ जाते हो
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
जी में ये किस का तसव्वुर आ गया
लम्हा लम्हा मुझे वीरान किए देता है
बस गया मेरे तसव्वुर में ये चेहरा किस का
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पूरी होती हैं तसव्वुर में उमीदें क्या क्या
दिल में सब कुछ है मगर पेश-ए-नज़र कुछ भी नहीं
लब-ए-ख़याल से उस लब का जो लिया बोसा
तो मुँह ही मुँह में अजब तरह का मज़ा आया
रात भर उन का तसव्वुर दिल को तड़पाता रहा
एक नक़्शा सामने आता रहा जाता रहा
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
आ कि आने के हैं हज़ार तरीक़
महव हूँ इस क़दर तसव्वुर में
शक ये होता है मैं हूँ या तू है
हैं तसव्वुर में उस के आँखें बंद
लोग जानें हैं ख़्वाब करता हूँ
बिछड़ कर उस से सीखा है तसव्वुर को बदन करना
अकेले में उसे छूना अकेले में सुख़न करना
इस क़दर महव-ए-तसव्वुर हूँ कि शक होता है
आईने में मिरी सूरत है कि सूरत तेरी
न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
जिसे देखता हूँ समझता हूँ तू है
बनाता हूँ मैं तसव्वुर में उस का चेहरा मगर
हर एक बार नई काएनात बनती है
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है आबाद मेरे तसव्वुर की दुनिया
हसीं आ रहे हैं हसीं जा रहे हैं
जोश-ए-जुनूँ में लुत्फ़-ए-तसव्वुर न पूछिए
फिरते हैं साथ साथ उन्हें हम लिए हुए
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
तरह तरह के तसव्वुर ख़ुदा से बाँध लिए
मैं कि तेरे ध्यान में गुम था
दुनिया मुझ को ढूँढ रही थी
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस
ऐनक न चाहिए न यहाँ दूरबीं मुझे
कुछ तो मिलता है मज़ा सा शब-ए-तन्हाई में
पर ये मालूम नहीं किस से हम-आग़ोश हूँ मैं
मैं ने तो तसव्वुर में और अक्स देखा था
फ़िक्र मुख़्तलिफ़ क्यूँ है शाएरी के पैकर में
जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
वो तो बंदा हुआ ख़ुदा न हुआ
यहाँ तो पैक-ए-तसव्वुर से काम चलता है
सबा नहीं न सही नामा-बर नहीं न सही