गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल 22
अशआर 25
बिजली चमकी तो अब्र रोया
याद आ गई क्या हँसी किसी की
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अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
दरिया की तरह आप हैं अपने कनार में
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न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
जिसे देखता हूँ समझता हूँ तू है
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ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
आह ने अर्श की ज़ंजीर हिलाई होती
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नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
सुना है हम ने 'गोया' की ज़बानी
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