चाँद पर शेर
चाँद उर्दू शाएरी का
एक लोकप्रिय विषय रहा हैI चाँद को उसकी सुंदरता, उसके उज्ज्वल नज़ारे से उसके प्रतिरूप के कारण कसरत से उपयोग में लाया गया हैI शाएर चाँद में अपने माशूक़ की शक्ल भी देखता हैI शाएरों ने बहुत दिलचस्प अंदाज़ में शेर भी लिखे हैं जिनमें चाँद और माहबूब के हुस्न के बीच प्रतिस्पर्धा का तत्व भी मौजूद है।
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
-
टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 1 अन्य
ईद का चाँद तुम ने देख लिया
चाँद की ईद हो गई होगी
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
हर एक रात को महताब देखने के लिए
मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर
पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया
ये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर
अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
फ़लक पे चाँद सितारे निकलते हैं हर शब
सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद
देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल
वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
देर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है
हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा
चाँद के साथ चलोगे कब तक
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
इक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी
चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है
चाँद पर चाँदनी नहीं होती
कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए
न लहू मिरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी
ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए
इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम आ जाए
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो
रात को रोज़ डूब जाता है
चाँद को तैरना सिखाना है
चाँद में तू नज़र आया था मुझे
मैं ने महताब नहीं देखा था
वो चार चाँद फ़लक को लगा चला हूँ 'क़मर'
कि मेरे बा'द सितारे कहेंगे अफ़्साने
ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में
रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे 'क़मर'
इस चाँदनी में उन को बुलाने को जाए कौन
सब सितारे दिलासा देते हैं
चाँद रातों को चीख़ता है बहुत
बारिश के बा'द रात सड़क आइना सी थी
इक पाँव पानियों पे पड़ा चाँद हिल गया
तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
आसमाँ के बदन पर कोई घाव है
चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं
हम ने भी उस से कोई बात न की
हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल
हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा
हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा
रात इक शख़्स बहुत याद आया
जिस घड़ी चाँद नुमूदार हुआ
ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही न हो
अँधियारी रात में कोई महताब ही न हो
दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
आसमान और ज़मीं का है तफ़ावुत हर-चंद
ऐ सनम दूर ही से चाँद सा मुखड़ा दिखला
चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे
आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
जब अकेले में रात मिल जाए
छुप गया ईद का चाँद निकल कर देर हुई पर जाने क्यों
नज़रें अब तक टिकी हुई हैं मस्जिद के मीनारों पर
वो जुगनू हो सितारा हो कि आँसू
अँधेरे में सभी महताब से हैं
मुझे इस ख़्वाब ने इक अर्से तक बे-ताब रक्खा है
इक ऊँची छत है और छत पर कोई महताब रक्खा है
मेरी तरह से ये भी सताया हुआ है क्या
क्यूँ इतने दाग़ दिखते हैं महताब में अभी
मुझे ये ज़िद है कभी चाँद को असीर करूँ
सो अब के झील में इक दाएरा बनाना है
हर रंग है तेरे आगे फीका
महताब है फूल चाँदनी का
चाँद में तू नज़र आया था मुझे
मैं ने महताब नहीं देखा था