अब्दुर्रहमान मोमिन
ग़ज़ल 25
अशआर 27
चाँद में तू नज़र आया था मुझे
मैं ने महताब नहीं देखा था
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'मोमिन-मियाँ' ये काम नहीं है ये इश्क़ है
क्या सोच में पड़े हो करूँ या करूँ नहीं
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चाँद में तू नज़र आया था मुझे
मैं ने महताब नहीं देखा था
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ख़ुद को कितना भुला दिया मैं ने
तू भी अब अजनबी सा लगता है
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