aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1816 - 1865 | रामपुर, भारत
ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह
जब कि दर-ए-मय-कदा वा हो गया
उस बुत का कूचा मस्जिद-ए-जामे नहीं है शैख़
उठिए और अपना याँ से मुसल्ला उठाइए
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
तंग इतना है कि गुंजाइश-ए-ता'मीर नहीं
जब तिरा नाम सुना तो नज़र आया गोया
किस से कहिए कि तुझे कान से हम देखते हैं
जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक़ी में पेश
जो थक के रह गया वही साबित-क़दम हुआ
Deewan-e-Nazim
कुल्लियात-ए-नाज़िम
1985
Wasokht-e-Nazim
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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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