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दीदार पर शेर

इश्क़ बहुत सारी ख़्वाहिशों

का ख़ूबसूरत गुलदस्ता है। दीदार, तमन्ना का ऐसा ही एक हसीन फूल है जिसकी ख़ुश्बू आशिक़ को बेचैन किए रखती है। महबूब को देख लेने भर का असर आशिक़ के दिल पर क्या होता है यह शायर से बेहतर भला कौन जान सकता है। आँखें खिड़की, दरवाज़े और रास्ते से हटने का नाम न लें ऐसी शदीद ख़्वाहिश होती है दीदार की। तो आइये इसी दीदार शायरी से कुछ चुनिंदा अशआर की झलक देखते हैः

देखने के लिए सारा आलम भी कम

चाहने के लिए एक चेहरा बहुत

असअ'द बदायुनी

देखने के लिए सारा आलम भी कम

चाहने के लिए एक चेहरा बहुत

असअ'द बदायुनी

कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा

हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया

हैदर अली आतिश

कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा

हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया

हैदर अली आतिश

मेरी आँखें और दीदार आप का

या क़यामत गई या ख़्वाब है

आसी ग़ाज़ीपुरी

मेरी आँखें और दीदार आप का

या क़यामत गई या ख़्वाब है

आसी ग़ाज़ीपुरी

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात

जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात

जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता

ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं

अहमद फ़राज़

तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता

ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं

अहमद फ़राज़

ज़ाहिर की आँख से तमाशा करे कोई

हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई

अल्लामा इक़बाल

ज़ाहिर की आँख से तमाशा करे कोई

हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई

अल्लामा इक़बाल

जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती

तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती

अनवर शऊर

जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती

तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती

अनवर शऊर

देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से

तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से

जुनैद हज़ीं लारी

देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से

तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से

जुनैद हज़ीं लारी

तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना

मिरी आँखों पे अपनी दीद की इक शाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना

मिरी आँखों पे अपनी दीद की इक शाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर

दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग

आज़ाद अंसारी

दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर

दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग

आज़ाद अंसारी

सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी

मुझे डर है तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए

जिगर मुरादाबादी

सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी

मुझे डर है तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए

जिगर मुरादाबादी

हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं

तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं

अमीर मीनाई

हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं

तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं

अमीर मीनाई

क्यूँ जल गया ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर

मिर्ज़ा ग़ालिब

क्यूँ जल गया ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर

मिर्ज़ा ग़ालिब

वो सूरत दिखाते हैं मिलते हैं गले कर

आँखें शाद होतीं हैं दिल मसरूर होता है

लाला माधव राम जौहर

वो सूरत दिखाते हैं मिलते हैं गले कर

आँखें शाद होतीं हैं दिल मसरूर होता है

लाला माधव राम जौहर

वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं

मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में

अमीर मीनाई

वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं

मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में

अमीर मीनाई

अब और देर कर हश्र बरपा करने में

मिरी नज़र तिरे दीदार को तरसती है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

अब और देर कर हश्र बरपा करने में

मिरी नज़र तिरे दीदार को तरसती है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए

ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

शुजा ख़ावर

आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए

ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

शुजा ख़ावर

जो और कुछ हो तिरी दीद के सिवा मंज़ूर

तो मुझ पे ख़्वाहिश-ए-जन्नत हराम हो जाए

हसरत मोहानी

जो और कुछ हो तिरी दीद के सिवा मंज़ूर

तो मुझ पे ख़्वाहिश-ए-जन्नत हराम हो जाए

हसरत मोहानी

तिरा दीदार हो हसरत बहुत है

चलो कि नींद भी आने लगी है

साजिद प्रेमी

तिरा दीदार हो हसरत बहुत है

चलो कि नींद भी आने लगी है

साजिद प्रेमी

मिरा जी तो आँखों में आया ये सुनते

कि दीदार भी एक दिन आम होगा

मीर तक़ी मीर

मिरा जी तो आँखों में आया ये सुनते

कि दीदार भी एक दिन आम होगा

मीर तक़ी मीर

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

ईद है और हम को ईद नहीं

बेखुद बदायुनी

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

ईद है और हम को ईद नहीं

बेखुद बदायुनी

कासा-ए-चश्म ले के जूँ नर्गिस

हम ने दीदार की गदाई की

मीर तक़ी मीर

कासा-ए-चश्म ले के जूँ नर्गिस

हम ने दीदार की गदाई की

मीर तक़ी मीर

उस को देखा तो ये महसूस हुआ

हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले

महमूद शाम

उस को देखा तो ये महसूस हुआ

हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले

महमूद शाम

इस क़मर को कभी तो देखेंगे

तीस दिन होते हैं महीने के

लाला माधव राम जौहर

इस क़मर को कभी तो देखेंगे

तीस दिन होते हैं महीने के

लाला माधव राम जौहर
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