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बदन पर शेर

उर्दू शायरी में बदन

कहीं-कहीं मुख्य पात्र के तौर पर सामने आता है । शायरों ने बदन को उसके सौन्दर्यशास्त्र के साथ विभिन्न और विविध तरीक़ों से शायरी में पेश किया है । बदन के सौन्दर्यशास्त्र को अपना विषय बनाने वाली उर्दू शायरी में अशलीलता को भी कला के अपने सौन्दर्य में स्थापित किया गया है । उर्दू शायरी ने बदन केंद्रित शायरी में सूफ़ीवाद से भी गहरा संवाद किया है ।

बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं

कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन

देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं

क़तील शिफ़ाई

किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं

वो रंग है ही नहीं जो तिरे बदन में नहीं

फ़रहत एहसास

तुझ सा कोई जहान में नाज़ुक-बदन कहाँ

ये पंखुड़ी से होंट ये गुल सा बदन कहाँ

लाला माधव राम जौहर

कौन बदन से आगे देखे औरत को

सब की आँखें गिरवी हैं इस नगरी में

हमीदा शाहीन

इक बूँद ज़हर के लिए फैला रहे हो हाथ

देखो कभी ख़ुद अपने बदन को निचोड़ के

शहरयार

गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई है

रंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में

मीर तक़ी मीर

ख़ुदा के वास्ते गुल को मेरे हाथ से लो

मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी

नज़ीर अकबराबादी

याद आते हैं मोजज़े अपने

और उस के बदन का जादू भी

जौन एलिया

रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल है

मैं फ़क़त रूह नहीं हूँ मुझे हल्का समझ

साक़ी फ़ारुक़ी

वो साफ़-गो है मगर बात का हुनर सीखे

बदन हसीं है तो क्या बे-लिबास आएगा

अमरदीप सिंह

मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब

निहायत अक़ीदत से पढ़ता रहा

मोहम्मद अल्वी

रूह को रूह से मिलने नहीं देता है बदन

ख़ैर ये बीच की दीवार गिरा चाहती है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

नूर-ए-बदन से फैली अंधेरे में चाँदनी

कपड़े जो उस ने शब को उतारे पलंग पर

लाला माधव राम जौहर

हाए वो उस का मौज-ख़ेज़ बदन

मैं तो प्यासा रहा लब-ए-जू भी

जौन एलिया

क्या बदन है कि ठहरता ही नहीं आँखों में

बस यही देखता रहता हूँ कि अब क्या होगा

फ़रहत एहसास

शर्म भी इक तरह की चोरी है

वो बदन को चुराए बैठे हैं

अनवर देहलवी

मगर गिरफ़्त में आता नहीं बदन उस का

ख़याल ढूँढता रहता है इस्तिआरा कोई

इरफ़ान सिद्दीक़ी

अब देखता हूँ मैं तो वो अस्बाब ही नहीं

लगता है रास्ते में कहीं खुल गया बदन

फ़रहत एहसास

रख दी है उस ने खोल के ख़ुद जिस्म की किताब

सादा वरक़ पे ले कोई मंज़र उतार दे

प्रेम कुमार नज़र

वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं

तमाम जिस्म को कासा बना के चलना है

अहमद कमाल परवाज़ी

ढूँडता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी

ये बदन जिस में उतारा जाए

मोहम्मद अल्वी

मैं तेरी मंज़िल-ए-जाँ तक पहुँच तो सकता हूँ

मगर ये राह बदन की तरफ़ से आती है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

अँधेरी रातों में देख लेना

दिखाई देगी बदन की ख़ुश्बू

मोहम्मद अल्वी

जी चाहता है हाथ लगा कर भी देख लें

उस का बदन क़बा है कि उस की क़बा बदन

प्रेम कुमार नज़र

लगते ही हाथ के जो खींचे है रूह तन से

क्या जानें क्या वो शय है उस के बदन के अंदर

जुरअत क़लंदर बख़्श

क्या बदन होगा कि जिस के खोलते जामे का बंद

बर्ग-ए-गुल की तरह हर नाख़ुन मोअत्तर हो गया

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें

बदन वही कि जहाँ रात हो गवारा भी

असअ'द बदायुनी

क्या सबब तेरे बदन के गर्म होने का सजन

आशिक़ों में कौन जलता था गले किस के लगा

आबरू शाह मुबारक

तिरे बदन की ख़लाओं में आँख खुलती है

हवा के जिस्म से जब जब लिपट के सोता हूँ

अमीर इमाम

क्या क्या बदन-ए-साफ़ नज़र आते हैं हम को

क्या क्या शिकम नाफ़ नज़र आते हैं हम को

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ये बे-कनार बदन कौन पार कर पाया

बहे चले गए सब लोग इस रवानी में

फ़रहत एहसास

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

मिरे अलाव में अब राख के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

उस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा

लगता है जब बदन से तैरे बदन हमारा

आबरू शाह मुबारक

बहुत लम्बी मसाफ़त है बदन की

मुसाफ़िर मुब्तदी थकने लगा है

प्रेम कुमार नज़र

मोहब्बत के ठिकाने ढूँढती है

बदन की ला-मकानी मौसमों में

नसीर अहमद नासिर

यूँ है डलक बदन की उस पैरहन की तह में

सुर्ख़ी बदन की जैसे छलके बदन की तह में

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ये तीर यूँ ही नहीं दुश्मनों तलक जाते

बदन का सारा खिचाव कमाँ पे पड़ता है

अफ़ज़ल गौहर राव

हर एक साज़ को साज़िंदगाँ नहीं दरकार

बदन को ज़र्बत-ए-मिज़राब से इलाक़ा नहीं

ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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