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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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प्रेम कुमार नज़र

1936 | होशियारपुर, भारत

नयी ग़ज़ल के अहम शायर

नयी ग़ज़ल के अहम शायर

प्रेम कुमार नज़र

ग़ज़ल 24

नज़्म 3

 

अशआर 11

आएगी हर तरफ़ से हवा दस्तकें लिए

ऊँचा मकाँ बना के बहुत खिड़कियाँ रख

रख दी है उस ने खोल के ख़ुद जिस्म की किताब

सादा वरक़ पे ले कोई मंज़र उतार दे

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जी चाहता है हाथ लगा कर भी देख लें

उस का बदन क़बा है कि उस की क़बा बदन

एक अंगड़ाई से सारे शहर को नींद गई

ये तमाशा मैं ने देखा बाम पर होता हुआ

उसी के ज़िक्र से हम शहर में हुए बदनाम

वो एक शख़्स कि जिस से हमारी बोल चाल

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