अमरदीप सिंह
ग़ज़ल 26
अशआर 3
वो साफ़-गो है मगर बात का हुनर सीखे
बदन हसीं है तो क्या बे-लिबास आएगा
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बे-फ़िक्र रहो यारो मैं आज भी हूँ बर्बाद
दिन फिर गए हैं मेरे अफ़्वाह उड़ी होगी
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दिमाग़-ओ-दिल की थकान वाला
कड़ा सफ़र है गुमान वाला
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