वैलेंटाइन डे पर शेर
इस ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह
में इश्क़ के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और इश्क़ करने वालों के बीच साझा कीजिए.
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
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टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 3 अन्य
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
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टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 3 अन्य
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
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टैग्ज़ : इश्क़और 7 अन्य
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
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टैग्ज़ : इश्क़और 7 अन्य
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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टैग्ज़ : इक़बाल डेऔर 4 अन्य
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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टैग्ज़ : इक़बाल डेऔर 4 अन्य
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
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टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
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टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
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टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
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टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले
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टैग्ज़ : नाज़और 1 अन्य
आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले
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टैग्ज़ : नाज़और 1 अन्य
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
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टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
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टैग्ज़ : इश्क़और 4 अन्य
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा
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टैग्ज़ : इश्क़और 2 अन्य
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा
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टैग्ज़ : इश्क़और 2 अन्य
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
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टैग्ज़ : उदासीऔर 3 अन्य
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
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टैग्ज़ : उदासीऔर 3 अन्य
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है
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टैग्ज़ : इश्क़और 3 अन्य
आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ
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टैग्ज़ : इश्क़और 5 अन्य
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए
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टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 1 अन्य
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए
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टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 1 अन्य
शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
व्याख्या
शब-ए-विसाल अर्थात महबूब से मिलन की रात। गुल करना यानी बुझा देना। इस शे’र में शब-ए-विसाल के अनुरूप चराग़ और चराग़ के संदर्भ से गुल करना। और “ख़ुशी की बज़्म में” की रियायत से जलने वाले दाग़ देहलवी के निबंध सृजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। शे’र में कई पात्र हैं। एक काव्य पात्र, दूसरा वो एक या बहुत से जिनसे काव्य पात्र सम्बोधित है। शे’र में जो व्यंग्य का लहजा है उसने समग्र स्थिति को और अधिक दिलचस्प बना दिया है। और जब “इन चराग़ों को” कहा तो जैसे कुछ विशेष चराग़ों की तरफ़ संकेत किया है।
शे’र के क़रीब के मायने तो ये हैं कि आशिक़-ओ-माशूक़ के मिलन की रात है, इसलिए चराग़ों को बुझा दो क्योंकि ऐसी रातों में जलने वालों का काम नहीं। चराग़ बुझाने की एक वजह ये भी हो सकती थी कि मिलन की रात में जो भी हो वो पर्दे में रहे मगर जब ये कहा कि जलने वालों का क्या काम है तो शे’र का भावार्थ ही बदल दिया। असल में जलने वाले रुपक हैं उन लोगों का जो काव्य पात्र और उसके महबूब के मिलन पर जलते हैं और ईर्ष्या करते हैं। इसी लिए कहा है कि उन ईर्ष्या करने वालों को इस महफ़िल से उठा दो।
शफ़क़ सुपुरी
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टैग्ज़ : चराग़और 4 अन्य
शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
व्याख्या
शब-ए-विसाल अर्थात महबूब से मिलन की रात। गुल करना यानी बुझा देना। इस शे’र में शब-ए-विसाल के अनुरूप चराग़ और चराग़ के संदर्भ से गुल करना। और “ख़ुशी की बज़्म में” की रियायत से जलने वाले दाग़ देहलवी के निबंध सृजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। शे’र में कई पात्र हैं। एक काव्य पात्र, दूसरा वो एक या बहुत से जिनसे काव्य पात्र सम्बोधित है। शे’र में जो व्यंग्य का लहजा है उसने समग्र स्थिति को और अधिक दिलचस्प बना दिया है। और जब “इन चराग़ों को” कहा तो जैसे कुछ विशेष चराग़ों की तरफ़ संकेत किया है।
शे’र के क़रीब के मायने तो ये हैं कि आशिक़-ओ-माशूक़ के मिलन की रात है, इसलिए चराग़ों को बुझा दो क्योंकि ऐसी रातों में जलने वालों का काम नहीं। चराग़ बुझाने की एक वजह ये भी हो सकती थी कि मिलन की रात में जो भी हो वो पर्दे में रहे मगर जब ये कहा कि जलने वालों का क्या काम है तो शे’र का भावार्थ ही बदल दिया। असल में जलने वाले रुपक हैं उन लोगों का जो काव्य पात्र और उसके महबूब के मिलन पर जलते हैं और ईर्ष्या करते हैं। इसी लिए कहा है कि उन ईर्ष्या करने वालों को इस महफ़िल से उठा दो।
शफ़क़ सुपुरी
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टैग्ज़ : चराग़और 4 अन्य