Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

विदाई पर 20 बेहतरीन शेर

किसी को रुख़्सत करते

हुए हम जिन कैफ़ियतों से गुज़रते हैं, उन्हें महसूस तो किया जा सकता है लेकिन उन का इज़हार और उन्हें ज़बान देना एक मुश्किल काम है । सिर्फ़ रचनात्मक-अभिव्यक्ति ही इन कैफ़ियतों को पेश कर कर सकती है । यहाँ अलविदा'अ और रुख़्सत की कैफ़ियतों से सर-शार शाइरी का संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है।

टॉप 20 सीरीज़

अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'

फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया

मीर तक़ी मीर

आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा

जाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा

उबैदुल्लाह अलीम

उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम था

सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

निदा फ़ाज़ली

जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है

जब याद हम जाएँ मिलने की दुआ करना

जलील मानिकपूरी

छोड़ने मैं नहीं जाता उसे दरवाज़े तक

लौट आता हूँ कि अब कौन उसे जाता देखे

शहज़ाद अहमद

अजीब होते हैं आदाब-ए-रुख़स्त-ए-महफ़िल

कि वो भी उठ के गया जिस का घर था कोई

सहर अंसारी

याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे

तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल

नासिर काज़मी

तुम सुनो या सुनो हाथ बढ़ाओ बढ़ाओ

डूबते डूबते इक बार पुकारेंगे तुम्हें

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ये एक पेड़ है इस से मिल के रो लें हम

यहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं

बशीर बद्र

उस से मिलने की ख़ुशी ब'अद में दुख देती है

जश्न के ब'अद का सन्नाटा बहुत खलता है

मुईन शादाब

गूँजते रहते हैं अल्फ़ाज़ मिरे कानों में

तू तो आराम से कह देता है अल्लाह-हाफ़िज़

अज्ञात

जाने वाले को कहाँ रोक सका है कोई

तुम चले हो तो कोई रोकने वाला भी नहीं

असलम अंसारी

कलेजा रह गया उस वक़्त फट कर

कहा जब अलविदा उस ने पलट कर

पवन कुमार

मैं जानता हूँ मिरे बा'द ख़ूब रोएगा

रवाना कर तो रहा है वो हँसते हँसते मुझे

अमीन शैख़

तुम इसी मोड़ पर हमें मिलना

लौट कर हम ज़रूर आएँगे

नज़र एटवी

दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया

अब सारी उम्र हाथ हिलाते रहेंगे हम

अहमद मुश्ताक़

अब के जाते हुए इस तरह किया उस ने सलाम

डूबने वाला कोई हाथ उठाए जैसे

अज्ञात

एक दिन कहना ही था इक दूसरे को अलविदा'अ

आख़िरश 'सालिम' जुदा इक बार तो होना ही था

सलीम शुजाअ अंसारी

वो अलविदा'अ का मंज़र वो भीगती पलकें

पस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है

शकेब जलाली

घर में रहा था कौन कि रुख़्सत करे हमें

चौखट को अलविदा'अ कहा और चल पड़े

मख़मूर सईदी

Join us for Rekhta Gujarati Utsav | 19th Jan 2025 | Bhavnagar

Register for free
बोलिए