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अज्ञात के शेर
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
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ज़िंदगी यूँही बहुत कम है मोहब्बत के लिए
रूठ कर वक़्त गँवाने की ज़रूरत क्या है
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किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी
मदद मिले न मिले आबरू तो जाती है
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टैग : ख़ुद्दारी
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मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी
अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं
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टैग : ईद
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ईद आई तुम न आए क्या मज़ा है ईद का
ईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का
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टैग : ईद
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तुम हँसो तो दिन निकले चुप रहो तो रातें हैं
किस का ग़म कहाँ का ग़म सब फ़ुज़ूल बातें हैं
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टैग : मुस्कुराहट
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पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में
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मुझ को छाँव में रखा और ख़ुद भी वो जलता रहा
मैं ने देखा इक फ़रिश्ता बाप की परछाईं में
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टैग : पिता
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ये तो इक रस्म-ए-जहाँ है जो अदा होती है
वर्ना सूरज की कहाँ सालगिरह होती है
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टैग : जन्मदिन
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दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिल
जिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो
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हसीन चेहरे की ताबिंदगी मुबारक हो
तुझे ये साल-गिरह की ख़ुशी मुबारक हो
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टैग : जन्मदिन
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माँगी थी एक बार दुआ हम ने मौत की
शर्मिंदा आज तक हैं मियाँ ज़िंदगी से हम
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पैमाना कहे है कोई मय-ख़ाना कहे है
दुनिया तिरी आँखों को भी क्या क्या न कहे है
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टैग : आँख
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जिन के किरदार से आती हो सदाक़त की महक
उन की तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं
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टैग : उस्ताद
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किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह हैं
अल्फ़ाज़ से भरपूर मगर ख़ामोश
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टैग : किताब
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शाम होते ही चराग़ों को बुझा देता हूँ
दिल ही काफ़ी है तिरी याद में जलने के लिए
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मौत से क्यूँ इतनी वहशत जान क्यूँ इतनी अज़ीज़
मौत आने के लिए है जान जाने के लिए
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टैग : मौत
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ये बे-ख़ुदी ये लबों की हँसी मुबारक हो
तुम्हें ये सालगिरह की ख़ुशी मुबारक हो
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टैग : जन्मदिन
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ख़ुदा करे न ढले धूप तेरे चेहरे की
तमाम उम्र तिरी ज़िंदगी की शाम न हो
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टैग : जन्मदिन
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सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं
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टैग : उर्दू
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शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे
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टैग : उम्मीद
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फ़रिश्ते हश्र में पूछेंगे पाक-बाज़ों से
गुनाह क्यूँ न किए क्या ख़ुदा ग़फ़ूर न था
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ऐश के यार तो अग़्यार भी बन जाते हैं
दोस्त वो हैं जो बुरे वक़्त में काम आते हैं
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टैग : दोस्त
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दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है
रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
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टैग : दोस्ती
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शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं
जिस ने सब के घर बनाए उस का घर कोई नहीं
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टैग : मज़दूर
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जो देखता हूँ वही बोलने का आदी हूँ
मैं अपने शहर का सब से बड़ा फ़सादी हूँ
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टैग : सच
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देखा न कोहकन कोई फ़रहाद के बग़ैर
आता नहीं है फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
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टैग : उस्ताद
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बच्चे फ़रेब खा के चटाई पे सो गए
इक माँ उबालती रही पथर तमाम रात
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टैग : माँ
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पलकों की हद को तोड़ के दामन पे आ गिरा
इक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया
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टैग : आँसू
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क्या मिला तुम को मिरे इश्क़ का चर्चा कर के
तुम भी रुस्वा हुए आख़िर मुझे रुस्वा कर के
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सुना है तेरी महफ़िल में सुकून-ए-दिल भी मिलता है
मगर हम जब तिरी महफ़िल से आए बे-क़रार आए
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इधर फ़लक को है ज़िद बिजलियाँ गिराने की
उधर हमें भी है धुन आशियाँ बनाने की
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