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अज्ञात के शेर
दूरी हुई तो उस के क़रीं और हम हुए
ये कैसे फ़ासले थे जो बढ़ने से कम हुए
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टैग : फ़ासला
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मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी
अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं
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टैग : ईद
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कुछ कह दो झूट ही कि तवक़्क़ो बंधी रहे
तोड़ो न आसरा दिल-ए-उम्मीद-वार का
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टैग : आसरा
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काबा सौ बार वो गया तो क्या
जिस ने याँ एक दिल में राह न की
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शहर-ए-लाहौर से कुछ दूर नहीं है देहली
एक सरहद है किसी वक़्त भी मिट सकती है
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टैग : सरहद
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ईद के बा'द वो मिलने के लिए आए हैं
ईद का चाँद नज़र आने लगा ईद के बा'द
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टैग : ईद
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जो एक लफ़्ज़ की ख़ुशबू न रख सका महफ़ूज़
मैं उस के हाथ में पूरी किताब क्या देता
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एक पत्ता शजर-ए-उम्र से लो और गिरा
लोग कहते हैं मुबारक हो नया साल तुम्हें
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टैग : नया साल
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लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा मैं भी देख लूँ
किस किस की मोहर है सर-ए-महज़र लगी हुई
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ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
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बहुत ग़ुरूर है तुझ को ऐ सर-फिरे तूफ़ाँ
मुझे भी ज़िद है कि दरिया को पार करना है
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शाम होते ही चराग़ों को बुझा देता हूँ
दिल ही काफ़ी है तिरी याद में जलने के लिए
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ये ख़ामोश मिज़ाजी तुम्हे जीने नहीं देगी
इस दौर में जीना है तो कोहराम मचा दो
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ज़िंदगी यूँही बहुत कम है मोहब्बत के लिए
रूठ कर वक़्त गँवाने की ज़रूरत क्या है
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मैं अपने साथ रहता हूँ हमेशा
अकेला हूँ मगर तन्हा नहीं हूँ
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टैग : तन्हाई
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फूल की ख़ुशबू हवा की चाप शीशे की खनक
कौन सी शय है जो तेरी ख़ुश-बयानी में नहीं
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दर्द-ए-उल्फ़त ज़िंदगी के वास्ते इक्सीर है
ख़ाक के पुतले इसी जौहर से इंसाँ हो गए
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गर आग मय-कशों की सज़ा है तो या ख़ुदा
दोज़ख़ में एक नहर बहा दे शराब की
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इन रोज़ों लुत्फ़-ए-हुस्न है आओ तो बात है
दो दिन की चाँदनी है फिर अँधियारी रात है
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हम ने ब-सद ख़ुलूस पुकारा है आप को
अब देखना है कितनी कशिश है ख़ुलूस में
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टैग : स्वागत
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कब है उर्यानी से बेहतर कोई दुनिया में लिबास
ये वो जामा है कि जिस का नहीं सीधा उल्टा
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गर्दिश-ए-वक़्त को ख़ातिर में न लाने वाली
शहर में दो नई आँखों का बड़ा चर्चा है
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कफ़न न मेरा हटाओ ज़माना देख न ले
मैं सो गया हूँ तुम्हारी निशानियाँ ले कर
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टैग : इश्क़
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या रब मिरी दुआओं में इतना असर रहे
फूलों भरा सदा मिरी बहना का घर रहे
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टैग : रक्षाबन्धन
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बरसों से कान पर है क़लम इस उमीद पर
लिखवाए मुझ से ख़त मिरे ख़त के जवाब में
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आप अगर यूँही चराग़ों को जलाते हुए आएँ
हम भी हर शाम नई बज़्म सजाते हुए आएँ
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टैग : स्वागत
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पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में
चेहरा खुली किताब है उनवान जो भी दो
जिस रुख़ से भी पढ़ोगे मुझे जान जाओगे
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मज़ा जब था कि मेरे मुँह से सुनते दास्ताँ मेरी
कहाँ से लाएगा क़ासिद दहन मेरा ज़बाँ मेरी
वो क्या गए कि नींद भी आँखों से ले गए
यानी कि ख़्वाब में भी न आए तमाम रात
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सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथ
मेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ
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टैग : तस्वीर
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लगता है कई रातों का जागा था मुसव्विर
तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है
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टैग : तस्वीर
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नशेमन में ही कौन से सुख मिले हैं
जो रोऊँ नशेमन को रह कर क़फ़स में
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ज़ाहिद-ए-तंग-नज़र ने मुझे काफ़िर जाना
और काफ़िर ये समझता है मुसलमान हूँ मैं
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जिस ने इक उम्र दी है बच्चों को
उस के हिस्से में एक दिन आया
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टैग : माँ
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अमीर-ए-शहर के ताक़ों में जलने वाले चराग़
उजाले कितने घरों के समेट लाते हैं
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ख़ुदा करे कि ये दिन बार बार आता रहे
और अपने साथ ख़ुशी का ख़ज़ाना लाता रहे
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अदा जीने की क़तरे ने सिखा दी
फ़ना हो के समुंदर हो गया है
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ख़ुदा तौफ़ीक़ देता है जिन्हें वो ये समझते हैं
कि ख़ुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तक़दीरें
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टैग : क़िस्मत
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वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे
मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा
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बशर आमाल कर अच्छे तिरे अक़्बा में काम आएँ
वहाँ जन्नत नहीं मिलती यहाँ से साथ जाती है
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ दिल ख़ुद माँग लेगी
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है
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वादा किया था फिर भी न आए मज़ार पर
हम ने तो जान दी थी इसी ए'तिबार पर
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इतने में और चर्ख़ ने मिट्टी पलीद की
बच्चे ने मुस्कुरा के ख़बर दी जो ईद की
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लाम के मानिंद हैं गेसू मिरे घनश्याम के
हैं वही काफ़िर कि जो बंदे नहीं 'इस लाम' के
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