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तस्वीर पर 20 बेहतरीन शेर

तस्वीर को विषय बनाती

उर्दू शाइरी, इश्क़-ओ-आशिक़ी और सामान्य जीवन के फैले हुए तजरबात को अपने ख़ास रंगों में पेश करती है । तस्वीर को शाइरी में उस की ख़ूबसूरती, ख़ामोशी, भाव एवं अभिव्यक्ति की स्थिरता और गतिशीलता के अलावा और दूसरे अर्थों में रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है । तस्वीर यूँ तो किसी वस्तु का अक्स ही होता है, लेकिन उस को देखते हुए हम जहाँ उस से प्रभावित होते हैं वहीं यूँ भी होता है किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती । तस्वीर उर्दू शाइरी में महबूब का रूपक भी बनती है, और उस से एक विषय के तौर पर आशिक़ की बेचैनी और कश-मकश की सूरतें सामने आती हैं । इस तरह के अलग-अलग और फैले हुए तजरबे से लुत्फ़ हासिल करने के लिए यहाँ तस्वीर-शाइरी का एक संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है ।

टॉप 20 सीरीज़

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत

हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन

ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं

जिगर मुरादाबादी

आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से

हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं

जलील मानिकपूरी

ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले

मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ

क़ैसर-उल जाफ़री

चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़

तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद

दाग़ देहलवी

जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर

वो तस्वीर बातें बनाने लगी

आदिल मंसूरी

मुझ को अक्सर उदास करती है

एक तस्वीर मुस्कुराती हुई

विकास शर्मा राज़

भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'

आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए

शकील बदायूनी

कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए

उस की तस्वीर हटा दी जाए

मोहम्मद अल्वी

मैं ने तो यूँही राख में फेरी थीं उँगलियाँ

देखा जो ग़ौर से तिरी तस्वीर बन गई

सलीम बेताब

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी

अहमद फ़राज़

मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़

साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है

साबिर दत्त

दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार

जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली

लाला मौजी राम मौजी

मैं ने भी देखने की हद कर दी

वो भी तस्वीर से निकल आया

शहपर रसूल

कह रही है ये तिरी तस्वीर भी

मैं किसी से बोलने वाली नहीं

नूह नारवी

लगता है कई रातों का जागा था मुसव्विर

तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है

अज्ञात

आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल

अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथ

मेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ

अज्ञात

तिरी तस्वीर तो वा'दे के दिन खिंचने के क़ाबिल है

कि शर्माई हुई आँखें हैं घबराया हुआ दिल है

नज़ीर इलाहाबादी
बोलिए