जुस्तुजू पर शेर
जुस्तुजू को विषय बनाने
वाली शाएरी बहुत दिलचस्प है। इस में जुस्तुजू, और उस की विविध सूरतें और तलाश में लगे हुए शख़्स की परिस्थितियाँ भी हैं और इसके परिणाम में हासिल होने वाले तजुर्बात भी। यह जुस्तजू प्रेम की भी है और प्रेमीका की भी, ख़ुदा की भी है, और स्वयं अपनी ज़ात की भी। इस शाएरी का वह पल सबसे अधिक दिलचस्प है जहाँ केवल जुस्तुजू ब-ज़ात-ए-ख़ुद जुस्तुजू का प्राप्तांक रह जाती है इसमें न किसी मंज़िल की खोज होती है और न ही किसी लक्ष्य का पीछा।
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
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नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
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ऐ शख़्स मैं तेरी जुस्तुजू से
बे-ज़ार नहीं हूँ थक गया हूँ
ऐ शख़्स मैं तेरी जुस्तुजू से
बे-ज़ार नहीं हूँ थक गया हूँ
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
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जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
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सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
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सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
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पा सकेंगे न उम्र भर जिस को
जुस्तुजू आज भी उसी की है
पा सकेंगे न उम्र भर जिस को
जुस्तुजू आज भी उसी की है
तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी
ख़ुद को गँवा के कौन तिरी जुस्तुजू करे
तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी
ख़ुद को गँवा के कौन तिरी जुस्तुजू करे
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है
जो कि पेशानी पे लिक्खी है वो पेश आनी है
जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है
जो कि पेशानी पे लिक्खी है वो पेश आनी है
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
अब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
अब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ
खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में
हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम
खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में
हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम
वर्ना इंसान मर गया होता
कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी
वर्ना इंसान मर गया होता
कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी
मिरी तरह से मह-ओ-महर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते
मिरी तरह से मह-ओ-महर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते
तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री
तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए
तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री
तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
ख़ुद अपनी जुस्तुजू का आप हासिल हो गया हूँ मैं
तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
ख़ुद अपनी जुस्तुजू का आप हासिल हो गया हूँ मैं
तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना
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तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना
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निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा
जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में
वो लड़का जाने कब का मर चुका है
जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में
वो लड़का जाने कब का मर चुका है
हम कि मायूस नहीं हैं उन्हें पा ही लेंगे
लोग कहते हैं कि ढूँडे से ख़ुदा मिलता है
हम कि मायूस नहीं हैं उन्हें पा ही लेंगे
लोग कहते हैं कि ढूँडे से ख़ुदा मिलता है
ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहीं
तिरी तलाश कहीं अपनी जुस्तुजू तो नहीं
ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहीं
तिरी तलाश कहीं अपनी जुस्तुजू तो नहीं
तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए
कि हम से तय न हुए फ़ासले जुदाई के
तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए
कि हम से तय न हुए फ़ासले जुदाई के
मैं ये चाहता हूँ कि उम्र-भर रहे तिश्नगी मिरे इश्क़ में
कोई जुस्तुजू रहे दरमियाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी
मैं ये चाहता हूँ कि उम्र-भर रहे तिश्नगी मिरे इश्क़ में
कोई जुस्तुजू रहे दरमियाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
वो आफ़्ताब में है न है माहताब में
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
वो आफ़्ताब में है न है माहताब में
उम्र-ए-रफ़्ता जा किसी दीवार के साए में बैठ
बे-सबब की ख़्वाहिशें हैं और घर की जुस्तुजू
उम्र-ए-रफ़्ता जा किसी दीवार के साए में बैठ
बे-सबब की ख़्वाहिशें हैं और घर की जुस्तुजू
मुझ को शौक़-ए-जुस्तुजू-ए-काएनात
ख़ाक से 'आदिल' ख़ला तक ले गया
मुझ को शौक़-ए-जुस्तुजू-ए-काएनात
ख़ाक से 'आदिल' ख़ला तक ले गया