नईम सरमद
ग़ज़ल 9
अशआर 10
कैसी बिपता पाल रखी है क़ुर्बत की और दूरी की
ख़ुशबू मार रही है मुझ को अपनी ही कस्तूरी की
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अब की सर्दी में कहाँ है वो अलाव सीना
अब की सर्दी में मुझे ख़ुद को जलाना होगा
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मैं जिन्हें दिल पे खाए फिरता हूँ
तिरे हिस्से के रंज थे मौला
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अपने होने से भी इंकार किए जाते हैं
तेरे होने का यक़ीं ख़ुद को दिलाते हुए हम
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मैं इक ख़्वाब हूँ तेरा देखा हुआ हूँ
तू इक नींद है मुझ में सोई पड़ी है
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