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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हातिम अली मेहर

1815 - 1879

मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन और मित्र हाई कोर्ट के वकील एवं माननीय मजिस्ट्रेट

मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन और मित्र हाई कोर्ट के वकील एवं माननीय मजिस्ट्रेट

हातिम अली मेहर

ग़ज़ल 50

अशआर 68

सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'

जब हुए बे-कार बस तौक़ीर आधी रह गई

अबरू का इशारा किया तुम ने तो हुई ईद

जान यही है मह-ए-शव्वाल हमारा

मार डाला तिरी आँखों ने हमें

शेर का काम हिरन करते हैं

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अपना बातिन ख़ूब है ज़ाहिर से भी जान-ए-जाँ

आँख के लड़ने से पहले जी लड़ा बैठे हैं हम

हम भी बातें बनाया करते हैं

शेर कहना मगर नहीं आता

पुस्तकें 9

 

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