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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

आवाज़ पर शेर

सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन

होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज़ के साथ

आसी उल्दनी

ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है

वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है

बशीर बद्र

ख़त्म हो जाएगा जिस दिन भी तुम्हारा इंतिज़ार

घर के दरवाज़े पे दस्तक चीख़ती रह जाएगी

ताहिर फ़राज़

लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे

जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ

बशीर बद्र

तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं

ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फूल की ख़ुशबू हवा की चाप शीशे की खनक

कौन सी शय है जो तेरी ख़ुश-बयानी में नहीं

अज्ञात

मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे

मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं

असग़र गोंडवी

रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी

गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने

मुनीर नियाज़ी

उम्र-भर को मुझे बे-सदा कर गया

तेरा इक बार मुँह फेर कर बोलना

ताहिर फ़राज़

मैं उस को खो के भी उस को पुकारती ही रही

कि सारा रब्त तो आवाज़ के सफ़र का था

मंसूरा अहमद

उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के

वो चहकता था तो हँसते थे पर-ओ-बाल उस के

वज़ीर आग़ा

छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर

अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है

असरार-उल-हक़ मजाज़

ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी

उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था

अहमद ख़याल

हाथ जिस को लगा नहीं सकता

उस को आवाज़ तो लगाने दो

अम्मार इक़बाल

खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं

अरे तौबा बड़ी तौबा-शिकन आवाज़ होती है

अज्ञात

मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है

ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है

अर्श मलसियानी

लय में डूबी हुई मस्ती भरी आवाज़ के साथ

छेड़ दे कोई ग़ज़ल इक नए अंदाज़ के साथ

अज्ञात

उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक

शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो

मोमिन ख़ाँ मोमिन

धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए

ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए

परवीन शाकिर

मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग

उस की आवाज़ कान में आवे

ग़मगीन देहलवी

इस रस्ते पर पीछे से इतनी आवाज़ें आईं 'जमाल'

एक जगह तो घूम के रह गई एड़ी सीधे पाँव की

जमाल एहसानी

तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में हो

लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में हो

मंज़र लखनवी

चराग़ जलते हैं बाद-ए-सबा महकती है

तुम्हारे हुस्न-ए-तकल्लुम से क्या नहीं होता

हामिद महबूब

वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें

तवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना

वज़ीर आग़ा

मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी

ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो

अहमद मुश्ताक़

गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में

तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है

अहमद मुश्ताक़

एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी

ढूँढता हूँ तो पस-ए-साहिल-ए-शब कुछ भी नहीं

अलीमुल्लाह हाली

ख़ामोशी के नाख़ुन से छिल जाया करते हैं

कोई फिर इन ज़ख़्मों पर आवाज़ें मलता है

अमीर इमाम

बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से

लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है

अज्ञात

कोई आया तिरी झलक देखी

कोई बोला सुनी तिरी आवाज़

जोश मलीहाबादी

आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए

वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है

मुनीर नियाज़ी

दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते थे

अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से

जलील मानिकपूरी

मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़

उसी ख़ाना-ख़राब की सी है

मीर तक़ी मीर

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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