अर्श मलसियानी
ग़ज़ल 53
नज़्म 33
अशआर 26
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है
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मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं
ज़िंदगी भी जान ले कर जाएगी
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इक रौशनी सी दिल में थी वो भी नहीं रही
वो क्या गए चराग़-ए-तमन्ना बुझा गए
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ख़ुश्क बातों में कहाँ है शैख़ कैफ़-ए-ज़िंदगी
वो तो पी कर ही मिलेगा जो मज़ा पीने में है
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बला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत है
हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है
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नअत 1
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