वीरानी पर शेर
शायरी में वीरानी हमारी
आस-पास की दुनिया की भी है। कभी चमन वीरान होता है, कभी घर और कभी बस्तियाँ। शायर इन सबको एक टूटे हुए दिल और ज़ख़मी एहसास के साथ मौज़ू बनाता है। साथ ही इस वीरानी का दायरा फैल कर दिल की वीरानी तक आ पहुँचता है। इश्क़ का आसेब किस तरह से दिल की सारी रौनक़ों को खा जाता है इस का अंदाज़ा आपको हमारे इस इंतिख़ाब से होगा।
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
व्याख्या
इस शेर का मुख्य विचार “वीरानी” (उजाड़पन) है — चाहे वह वीरानी जंगल (दश्त) की हो या घर की। शेर से जो अर्थ तुरंत निकलते हैं, वह यह हैं कि हम जिस जंगल को देख रहे हैं, वह इतना सुनसान और डरावना है कि उसे देख कर हमें अपने घर की सुरक्षा और शांति याद आती है। लेकिन अगर ज़रा गहराई से सोचें, तो इसका एक और अर्थ यह भी हो सकता है कि हम तो समझते थे कि हमारे घर से ज़्यादा वीरान जगह कोई नहीं होगी, लेकिन यह जंगल तो और भी ज़्यादा वीरान है। इस वीरानी को देख कर घर की याद आने का एक मतलब यह भी है कि शायद एक दिन हमारा घर भी इसी तरह उजड़ जाएगा।
ग़ालिब ने एक और जगह, दूसरे अंदाज़ में, बस्तियों के वीरान हो जाने का ज़िक्र किया है:
यूँ ही गर रोता रहा ग़ालिब तो ऐ अहल-ए-जहाँ
देखना इन बस्तियों को तुम कि वीरान हो गईं
घर और उसके उजड़ जाने का डर ग़ालिब ने एक और शेर में इस तरह बताया है:
गिर्या चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टपके है बियाबाँ होना
इस शेर का एक और अर्थ यह भी है कि आशिक़ (प्रेमी) को अपनी दीवानगी में किसी सुनसान जगह की तलाश थी। वैसे तो उसका अपना घर भी उजाड़ था, लेकिन वह चाहता था कि उसे कोई ऐसी जगह मिले जो इससे भी ज़्यादा वीरान हो — और इसी तलाश में वह जंगल की ओर जाता है। लेकिन वहाँ भी उसे निराशा मिलती है। वह अपने मन में कहता है, यह भी क्या वीरानी है! इससे ज़्यादा तो मेरा घर उजड़ा हुआ है।
इस शेर में वीरानी और उसके साथ शाइर की आत्मीयता (लगाव) का वर्णन है। चाहे वह वीरानी जंगल की हो या उसके अपने घर की — दोनों उसके लिए एक जैसी हैं। अस्ल में यह शाइर के अंदर की वीरानी है, जो उसे बाहर की दुनिया में अलग-अलग रूपों में दिखाई देती है।
मोहम्मद आज़म
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
-
टैग्ज़ : दिलऔर 1 अन्य
अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं
सहरा को बहुत नाज़ है वीरानी पे अपनी
वाक़िफ़ नहीं शायद मिरे उजड़े हुए घर से
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है
इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
वीरानी होती है तो हैरानी होती है
हम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन
तुम कोई अच्छा सा रख लो अपने वीराने का नाम
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
वगर्ना हम तो अपने घर की वीरानी से मर जाएँ
बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
कुछ ख़राबे भी तो आबाद हुआ करते हैं
तुम्हारे रंग फीके पड़ गए नाँ?
मिरी आँखों की वीरानी के आगे
ख़त्म होने को हैं अश्कों के ज़ख़ीरे भी 'जमाल'
रोए कब तक कोई इस शहर की वीरानी पर
किस ने आबाद किया है मिरी वीरानी को
इश्क़ ने? इश्क़ तो बीमार पड़ा है मुझ में
मेरी बर्बादी में हिस्सा है अपनों का
मुमकिन है ये बात ग़लत हो पर लगता है
वो काम रह के करना पड़ा शहर में हमें
मजनूँ को जिस के वास्ते वीराना चाहिए
दूर तक दिल में दिखाई नहीं देता कोई
ऐसे वीराने में अब किस को सदा दी जाए
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या
-
टैग्ज़ : धूपऔर 1 अन्य
मैं वो बस्ती हूँ कि याद-ए-रफ़्तगाँ के भेस में
देखने आती है अब मेरी ही वीरानी मुझे
तन्हाई की दुल्हन अपनी माँग सजाए बैठी है
वीरानी आबाद हुई है उजड़े हुए दरख़्तों में
न हम वहशत में अपने घर से निकले
न सहरा अपनी वीरानी से निकला
-
टैग्ज़ : वहशतऔर 1 अन्य
फ़र्क़ नहीं पड़ता हम दीवानों के घर में होने से
वीरानी उमड़ी पड़ती है घर के कोने कोने से
दो जीवन ताराज हुए तब पूरी हुई बात
कैसा फूल खिला है और कैसी वीरानी में
अंदर से मैं टूटा-फूटा एक खंडर वीराना था
ज़ाहिर जो ता'मीर न होती तो मैं यारो क्या करता