अंजुम सलीमी
ग़ज़ल 33
नज़्म 25
अशआर 73
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
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साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
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तुम अकेले में मिले ही नहीं वर्ना तुम को
और ही तरह के इक शख़्स से मिलवाता मैं
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इतना बे-ताब न हो मुझ से बिछड़ने के लिए
तुझ को आँखों से नहीं दिल से जुदा करना है
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रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
माँ का नेमुल-बदल ख़ुदा भी नहीं
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