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दुशमनी पर शेर

दोस्ती की तरह दुश्मनी

भी एक बहुत बुनियादी इन्सानी जज़्बा है। ये जज़्बा मनफ़ी ही सही लेकिन बाज़-औक़ात इससे बच निकलना और इस से छुटकारा पाना ना-मुमकिन सा होता है अलबत्ता शायरों ने इस जज़्बे में भी ख़ुश-गवारी के किए पहलू निकाल लिए हैं, उनका अंदाज़ा आपको हमारा ये इंतिख़ाब पढ़ कर होगा। इस दुश्मनी और दुश्मन का एक ख़ालिस रूमानी पहलू भी है। इस लिहाज़ से माशूक़ आशिक़ का दुश्मन होता है जो ता उम्र ऐसी चालें चलता रहता है जिससे आशिक़ को तकलीफ़ पहुंचे, रक़ीब से रस्म-ओ-राह रखता है। इस की दुश्मनी की और ज़्यादा दिल-चस्प और मज़ेदार सूरतों को जानने के लिए हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे

जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा हों

बशीर बद्र

दुश्मनी लाख सही ख़त्म कीजे रिश्ता

दिल मिले या मिले हाथ मिलाते रहिए

निदा फ़ाज़ली

दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम

तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे

बशीर बद्र

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है

दोस्तों ने भी क्या कमी की है

हबीब जालिब

लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी

हम तिरी दोस्ती से डरते हैं

हबीब जालिब

ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी की

दुश्मनी का भी हक़ अदा हुआ

हसरत मोहानी

दोस्त तुझ को रहम आए तो क्या करूँ

दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है

लाला माधव राम जौहर

करे है अदावत भी वो इस अदा से

लगे है कि जैसे मोहब्बत करे है

कलीम आजिज़

किसे ख़बर वो मोहब्बत थी या रक़ाबत थी

बहुत से लोग तुझे देख कर हमारे हुए

अहमद फ़राज़

जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ

दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो

लाला माधव राम जौहर

उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें

वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया

फ़सीह अकमल

मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी

किराए के घर थे बदलते रहे

बशीर बद्र

मैं हैराँ हूँ कि क्यूँ उस से हुई थी दोस्ती अपनी

मुझे कैसे गवारा हो गई थी दुश्मनी अपनी

एहसान दानिश

निगाह-ए-नाज़ की पहली सी बरहमी भी गई

मैं दोस्ती को ही रोता था दुश्मनी भी गई

माइल लखनवी

तअल्लुक़ है अब तर्क-ए-तअल्लुक़

ख़ुदा जाने ये कैसी दुश्मनी है

कामिल बहज़ादी

दुश्मनी ने सुना होवेगा

जो हमें दोस्ती ने दिखलाया

ख़्वाजा मीर दर्द

ये भी इक बात है अदावत की

रोज़ा रक्खा जो हम ने दावत की

अमीर मीनाई

अपने बेगाने से अब मुझ को शिकायत रही

दुश्मनी कर के मिरे दोस्त ने मारा मुझ को

असद अली ख़ान क़लक़

मुझे जो दोस्ती है उस को दुश्मनी मुझ से

इख़्तियार है उस का मेरा चारा है

ग़मगीन देहलवी

गया 'जौहर' अजब उल्टा ज़माना क्या कहें

दोस्त वो करते हैं बातें जो अदू करते नहीं

लाला माधव राम जौहर

मैं मोहब्बत छुपाऊँ तू अदावत छुपा

यही राज़ में अब है वही राज़ में है

कलीम आजिज़

वफ़ा पर दग़ा सुल्ह में दुश्मनी है

भलाई का हरगिज़ ज़माना नहीं है

दत्तात्रिया कैफ़ी

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