aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1905 - 1968
निगाह-ए-नाज़ की पहली सी बरहमी भी गई
मैं दोस्ती को ही रोता था दुश्मनी भी गई
याद और उन की याद की अल्लाह-रे मह्वियत
जैसे तमाम उम्र की फ़ुर्सत ख़रीद ली
मोहब्बत और 'माइल' जल्द-बाज़ी क्या क़यामत है
सुकून-ए-दिल बनेगा इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता
नज़र और वुसअत-ए-नज़र मालूम
इतनी महदूद काएनात नहीं
मैं ने देखे हैं दहकते हुए फूलों के जिगर
दिल-ए-बीना में है वो नूर तुम्हें क्या मालूम
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