अंदलीब शादानी के शेर
देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
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उफ़ वो तूफ़ान-ए-शबाब आह वो सीना तेरा
जिसे हर साँस में दब दब के उभरता देखा
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दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है
यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं
चाहत के बदले में हम बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो
झूट है सब तारीख़ हमेशा अपने को दुहराती है
अच्छा मेरा ख़्वाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो
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टैग : जवानी
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जिगर में टीस लब हँसने पे मजबूर
कुछ ऐसी ही हमारी ज़िंदगी है
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बे-नियाज़ाना बराबर से गुज़रने वाले
तेज़ कुछ क़ल्ब की रफ़्तार हुई थी कि नहीं
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