आँगन पर शेर
कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था
खेल में भी तो आधा आधा आँगन था
इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए
जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए
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फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको
मेरे घर के आँगन पर आसमान रहने दो
ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें
ये कैसे लोग हैं जिन को घरों से डर नहीं लगता
आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
किस किस घर का ज़िक्र करूँ में किस किस के सदमात लिखूँ
हमारे घर के आँगन में सितारे बुझ गए लाखों
हमारी ख़्वाब गाहों में न चमका सुब्ह का सूरज
पलट न जाएँ हमेशा को तेरे आँगन से
गुदाज़ लम्हों की बे-ख़्वाब आहटों से न रूठ
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बरस रही है उदासी तमाम आँगन में
वो रत-जगों की हवेली बड़े अज़ाब में है
दिल के आँगन में उभरता है तिरा अक्स-ए-जमील
चाँदनी रात में हो रात की रानी जैसे
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धूप मुसाफ़िर छाँव मुसाफ़िर आए कोई कोई जाए
घर में बैठा सोच रहा हूँ आँगन है या रस्ता है
जाने किस किरदार की काई मेरे घर में आ पहुँची
अब तो 'ज़फ़र' चलना है मुश्किल आँगन की चिकनाई में
आँगन में ये रात की रानी साँपों का घर काट इसे
कमरा अलबत्ता सूना है कोने में गुलदान लगा
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ख़ाकिस्तर-ए-जाँ को मिरी महकाए था लेकिन
जूही का वो पौधा मिरे आँगन में नहीं था