रईस फ़रोग़ के शेर
लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं ने कितने रस्ते बदले लेकिन हर रस्ते में 'फ़रोग़'
एक अंधेरा साथ रहा है रौशनियों के हुजूम लिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं
-
टैग : पिता
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन
मुझ में रू-पोश जो इक शख़्स है मर जाएगा
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से
अपने गाँव की हर गोरी को नई चुनरिया ला देना
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए
एक लम्हा भी पस-अंदाज़ नहीं कर सकते
आएगा मेरे बाद 'फ़रोग़' इन का ज़माना
जिस दौर का मैं हूँ मिरे अशआर नहीं हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
रू-ए-ज़मीं पे चार अरब मेरे अक्स हैं
इन में से मैं भी एक हूँ चाहे कहीं हूँ मैं
दिन के शोर में शामिल शायद कोई तुम्हारी बात भी हो
आवाज़ों के उलझे धागे सुलझाएँगे शाम को
-
टैग : याद
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
लाखों ही बार बुझ के जला दर्द का दिया
सो एक बार और बुझा फिर जला नहीं
धूप मुसाफ़िर छाँव मुसाफ़िर आए कोई कोई जाए
घर में बैठा सोच रहा हूँ आँगन है या रस्ता है
अब की रुत में जब धरती को बरखा की महकार मिले
मेरे बदन की मिट्टी को भी रंगों में नहला देना
लोग नाज़ुक थे और एहसास के वीराने तक
वो गुज़रते हुए आँखों की जलन से आए
घर में तो अब क्या रक्खा है वैसे आओ तलाश करें
शायद कोई ख़्वाब पड़ा हो इधर उधर किसी कोने में
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कुछ इतने पास से हो कर वो रौशनी गुज़री
कि आज तक दर-ओ-दीवार को मलाल सा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'
कैसी कैसी अजनबी दुनियाओं में
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
तेज़ हवा के साथ चला है ज़र्द मुसाफ़िर मौसम का
ओस ने दामन थाम लिया तो पल-दो-पल को रुका भी है
-
टैग : वक़्त
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बस्तियों में हम भी रहते हैं मगर
जैसे आवारा हवा सहराओं में
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम कोई अच्छे चोर नहीं पर एक दफ़अ तो हम ने भी
सारा गहना लूट लिया था आधी रात के मेहमाँ का
-
टैग : विसाल
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड