मुबारक अज़ीमाबादी के शेर
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
दिल नहीं वो दिल नहीं वो दिल नहीं
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तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं
तेरी रहमत के सहारे ने गुनहगार किया
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मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
एक दिन मौत की उम्मीद पे जीना होगा
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टैग : मौत
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रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद
बे-मोहब्बत ख़ुदा नहीं मिलता
फूल क्या डालोगे तुर्बत पर मिरी
ख़ाक भी तुम से न डाली जाएगी
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दिन भी है रात भी है सुब्ह भी है शाम भी है
इतने वक़्तों में कोई वक़्त-ए-मुलाक़ात भी है
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टैग : मुलाक़ात
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तिरी अदा की क़सम है तिरी अदा के सिवा
पसंद और किसी की हमें अदा न हुई
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हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
तुम्हारी अंजुमन का पूछना क्या
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कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
कौन दिन कौन बरस कौन महीना होगा
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टैग : इंतिज़ार
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आप का इख़्तियार है सब पर
आप पर इख़्तियार किस का है
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जो दिल-नशीं हो किसी के तो इस का क्या कहना
जगह नसीब से मिलती है दिल के गोशों में
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अपनी सी करो तुम भी अपनी सी करें हम भी
कुछ तुम ने भी ठानी है कुछ हम ने भी ठानी है
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मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी
जब बढ़ा दरमाँ तो बीमारी बढ़ी
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क़ुबूल हो कि न हो सज्दा ओ सलाम अपना
तुम्हारे बंदे हैं हम बंदगी है काम अपना
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टैग : बंदगी
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बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली
न यही रहती है ज़ालिम न वही रहती है
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ले चला फिर मुझे दिल यार-ए-दिल-आज़ार के पास
अब के छोड़ आऊँगा ज़ालिम को सितमगार के पास
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दामन अश्कों से तर करें क्यूँ-कर
राज़ को मुश्तहर करें क्यूँ-कर
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मिलो मिलो न मिलो इख़्तियार है तुम को
इस आरज़ू के सिवा और आरज़ू क्या है
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टैग : आरज़ू
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इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल
इक मिरा ख़्वाब कि जिस ख़्वाब की ताबीर नहीं
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कब उन आँखों का सामना न हुआ
तीर जिन का कभी ख़ता न हुआ
समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को
ये दोस्ती समझता है दुश्मन के प्यार को
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किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
ख़ुदा रक्खे इन्हें ये सब करम-फ़रमा हमारे हैं
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जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा
जो तड़प कर न कटी हो वो मिरी रात नहीं
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मैं तो हर हर ख़म-ए-गेसू की तलाशी लूँगा
कि मिरा दिल है तिरे गेसू-ए-ख़मदार के पास
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आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती
जाने में कभी आप तवक़्क़ुफ़ नहीं करते
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ये ग़म-कदा है इस में 'मुबारक' ख़ुशी कहाँ
ग़म को ख़ुशी बना कोई पहलू निकाल के
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किसी से आज का वादा किसी से कल का वादा है
ज़माने को लगा रक्खा है इस उम्मीद-वारी में
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मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी
'मुबारक' फिर न कहना ये सितम कोई सहे कब तक
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उस गली में हज़ार ग़म टूटा
आना जाना मगर नहीं छूटा
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कहीं ऐसा न हो कम-बख़्त में जान आ जाए
इस लिए हाथ में लेते मिरी तस्वीर नहीं
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टैग : तस्वीर
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मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
तिरे आस्ताँ से ऊँचा न मिरा ग़ुबार होगा
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गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही
समझ रहा हूँ कि अब तक बहार बाक़ी है
किसी की तमन्ना निकलती रही
मिरी आरज़ू हाथ मलती रही
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टैग : आरज़ू
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शिकस्त-ए-तौबा की तम्हीद है तिरी तौबा
ज़बाँ पे तौबा 'मुबारक' निगाह साग़र पर
ये तसर्रुफ़ है 'मुबारक' दाग़ का
क्या से क्या उर्दू ज़बाँ होती गई
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टैग : उर्दू
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खटक रही है कोई शय निकाल दे कोई
तड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार सीने में
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इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
इक तिरी ज़ुल्फ़ कि क़दमों से लगी रहती है
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टैग : ज़ुल्फ़
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ख़ैर साक़ी की सलामत मय-कदा
जिस क़दर पी उतनी हुश्यारी बढ़ी
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दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
ऐसे कामों के भी आग़ाज़ कहीं छुपते हैं
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तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
जो आह निकलती है वो याद-दहानी है
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टैग : आह
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कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
आज हज़रत जा के मस्जिद में मुसलमाँ हो गए
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दिल में आने के 'मुबारक' हैं हज़ारों रस्ते
हम बताएँ उसे राहें कोई हम से पूछे
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कुछ इस अंदाज़ से सय्याद ने आज़ाद किया
जो चले छुट के क़फ़स से वो गिरफ़्तार चले
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टैग : सय्याद
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क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
दिल में आईं दिल में ठहरीं दिल में पैकाँ हो गईं
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तुम को समझाए 'मुबारक' कोई क्यूँकर अफ़्सोस
तुम तो रोने लगे यार और भी समझाने से
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असर हो या न हो वाइज़ बयाँ में
मगर चलती तो है तेरी ज़बाँ ख़ूब
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कहाँ क़िस्मत में इस की फूल होना
वही दिल की कली है और हम हैं
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जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो
जो मुझ को चाहिए वो किए जा रहा हूँ मैं
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इस भरी महफ़िल में हम से दावर-ए-महशर न पूछ
हम कहेंगे तुझ से अपनी दास्ताँ सब से अलग
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मेरी दुश्वारी है दुश्वारी मिरी
मेरी मुश्किल आप की मुश्किल नहीं
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